आधुनिक हिंदी - साहित्य का इतिहास | Aadhunik Hindi-sahitya Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.39 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूर्वपीठिका कै ५
भाषा सें खड़ी बोली, अझवधी तथा न्रज-साषा तीनों का योग पाया जाता
है। 'लागरीप्रचारिणी-ससा ' काशी” द्वारा प्रकाशित “कबीर-प्रंथावली” की
भाषा पर पंजाबी बोलो का थी प्रभाव पढ़ा है । इन कवियों की सीापा
' “साहित्यिक नहीं होती थी । इनका लद्य काव्य-रचना नहीं था; जनता
में झपने घर्म का प्रचार करना था । ऐसी श्वस्था में इनके लिए यह
अनिवायं थी कि ये लोक में प्रचलित भाषा में ही अपने उपदेश दें ।
विस्तृत घर्म-प्रचार को लक्ष्य में रखकर भगवान् बुददेव ने भी लोकभाषा
( पाली ) का थाश्रय अहणु किया था । इन संतों में स्रे सुंदरदात की
रचना साहित्य कोटि की होती थी । इनका 'सुंद॒र-विलास'” जिसमें
_ कवित्त, सवेया झादि छुंदों का झधिक प्रयोग हुआ है, प्रसिद्ध है।
मलकदास, अक्षरअनन्य, प्लंट्दास, तुलसीदास आदि अनेक संत कवि
हुए और इन्होंने अनेक संप्रदायों की स्थापना की । यह परम्परा अभी तक
चलती 'आ रही है | आजकल का 'राधास्वासी-संप्रदाय' इसी परंपरा का
एक रूप है। इन संत कवियों के छ्वारा वास्तव में लोक का वहुत कुछ
उपकार हुमा । निम्न श्रेणी के लोगों में छात्मविश्वास की आावना जागरित
, करने का श्रेय इन्हों को प्राप्त है । परंतु अप्रत्यक्ष रूप से वर्णाश्रम घम्म को
इनके द्वारा कुछ क्षति भी पहुँची । निक संत कवियों ने वैदिक धर्म के
विधान को रहस्य न समक उसका खंडन करना प्रारंथ कर दिया । इससे
लौकिक 'विधान के पालन में शिथिलता लगी । लोग दो चार
साखियाों बनाकर अपने को परमज्ञानी सम भने - लगे । उनके अलुकरण
पर और भी अनेक अकर्संण्य लोगों ने ज्ञान का चोला पहनना प्रारंभ
किया । सलूकदास आदि के उपदेशों से आलसियों की संख्या भी बढ़ने
लगी । आज कल भी ऐसे लोग जिनसे कुछ करते धरते नहीं बनता,
उच्च स्वर सें सलूकदास का यह मंत्र जपते हुए सुनाई पढ़ते हें |
_. . अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम ।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम ॥
ये संत कवि निगुणोपासकं कहे जाते हैं । इसका कारण यही है कि
लोग व्यक्त सत्ता की उपासना करते है। इनके इस विषय के
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