कृष्ण सागर | Krishna Sagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.03 MB
कुल पष्ठ :
197
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पे कुश्यासागर । द्पाऊा ॥ सपोर्कस पटवषद्टकिरा । उग्योकरन उत्पात घनेरा ॥ मथुराके बाठकजों पावे । तिनहि मारि गिरि कंदर नावे ॥ काहू बहानाकरि अस्त्राना । छाइहतेयमुना हरपषाना॥ पावे जेहिअपनेते बढ़िके । ताहिबघे छातीपर चढ़िके ॥ कीन्हेसि सकछ प्रजान दुखारी । कददनऊगे ते सकल विचारी ॥ यहनहिं वीय्य॑ नपतिधम्मी को । लिये असरकोड जन्म कहीको ॥ दो परजाके दुख दे खिके समझायो नप ताहि । तदपिनसमुझाअसुरकछुर हीकूमतिमनमां हि॥ चो ० अछवषकोमयोसुजबहदी।उड्योमगधघकेनपसेतबद्दी ॥ मगधघभप जानामनमाही । मोंते अधिकबली ये आहीं ॥ निज इं सुता बिवाही ताको । करिबिंवाह आयो सधु+ राको ॥ उगा कहननिजपितुहिं सुनाई । राम नाम तुम लेहु न माई ॥ कदनप ममकततों हें सोई । बिनाजपें केसे हितहोंई ॥तब तेह्ठ भाषा जपन उमेश । तजेंउ न रामदहिं नाम नरेशु ॥ राज्यपिता को तठबलें छीन्हों । राव प्रजन को आयसुदीन्हों ॥ करो न कोइजप तपमखदाना । ठेडु नराम नाम नइ्ध्याना ॥ दो ०. ममआआयसुजोटारिहे तुरतहिबधघिहों ताहि । कंसकेायसभयउ जब काहेनघमेपरा हि ॥ कहुंनहीतशुभकम्मतहूँ जीतेउन्पसबदोर । कटकलेइ तबसाचहा चठन इंद्रकी ओर ॥ चो० जीतन इन्द्र चढा सो जहदीं । मंत्री एक ब- झायों तबहीं ॥# दुदरहा उदसेन समयके । तजो आश
User Reviews
No Reviews | Add Yours...