काश्मीर देश व संस्कृति | Kashmir Desh Wa Sanskriti

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Kashmir Desh Wa Sanskriti by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेतिहासिक सूचनाएं श्द ही रखा जाता रहा होगा । वस्तुत इन नामों का संस्कृत-मूल-सिद्ध किया जा सकता है । आर झाजकल काश्सीरी में उनका जो रूप बदल कर हो ग्या है बह ध्वनि-विंकार के स्वाभाविक नियम के अनुसार । इसलिए नामों की अनाय व्युत्यत्ति की खोज करना कि कहीं उन्हें बाद में संस्कृत का लिबास न पहना दिया गया हो व्यर्थ है । जहाँ तक कल्हण का सबंध है उसने एक-दो स्थानों पर ही इस तरह की प्रवृत्ति दिखाई है और श्रचलित नामों को संस्कृत के ढाँचे में ढाल कर उपस्थित किया है । उदाहरण के लिए कादम्बरी कथासार के लेखक अभिनन्द ने जिस गाँव का नाम गोरमूलक दिया है उसे कल्हण ने घोरमूलक कर दिया है । अन्यथा श्रधिकतर उसने पहाड़ों नदियों करनों श्रौर दरों श्रादि के शुद्ध प्रचलित नाम दिये हैं ओर उनके संस्कृत उच्च्वारण पर जोर नहीं दिया है। ३. कल्हण की राजतरंगिनी में काश्मीर के प्राचीन सांस्कृतिक भूगोल की दष्टि से जितनी उपयोगी और प्रामाणिक सूचनाएं है उतनी ही उपयोगी सूचनाएं उसमें यहाँ की जलवायु परिस्थिति विभिन्‍न सानव-जातियों की प्रादेशिक स्थिति श्र राजनीतिक इतिहास के संबंध में हैं । वितस्ता केलम के मार्ग को नियंत्रित करने के लिए जो प्रयत्न किये गए उनका भी उसमें सविस्तार वर्णन है । इससे यह पता लगाने में सुविधा हुई है कि नियन्त्रण के पहले श्रौर बाद में वितस्ता श्र सिंघ गंगा के संगम-स्थान में कितना परिवर्तन हुआ है । कल्हण के बाद लगभग तीन सौ वर्षा तक देश में झराजकता फैली रही । अन्तिम हिन्दूरराजाओं ्रौर प्रारंभ के सुसलमान सुलतानों के शासन कुव्यवस्था निरंकुशता झौर राजनीतिक षडयेत्रों के कारण झशान्तिपूर्ण बने इ्न्य विवरण रहे जिससे विद्याध्ययन श्रौोर पाणिड्त्य का हास हो गया साहित्य ब्रोर इतिहास-रचना की प्रवृत्ति दब गई और ज्ञान विज्ञान की उपेक्षा की गई। परन्तु इस तीन सौं वर्षा के झ्राध्यात्मिक शून्य और मरुथल के बाद एक उबर मरीचिका के दर्शन हुए सुलतान जनुलुभ्नाब्दीन १४२१- १ आज भी पचतों या स्थानों के काश्मीरी नामों से उनका सस्कूत सूल प्रकट होता है । जैसे ग्रामों के नाम के आगे पूर या पोर पुर हौम झाश्रम कोठ कोट गाम या गोम आम कुण्डेल कुर्डल वोर वाट आदि सीलों और दलदुलों के नाम के श्रागे सर सरख नडबल नडवला नागे नाग झादि उच्च पव॑तीय स्थानों शिखरों और बरों के नाम के साथ वन्ू वन नोर नाड़ मग॑ सठिका युलल रलिका? घोर भटारिका चथ पथ आदि श्ौर करनों और नहरों के नाम के थागे कल कुल्या खन खनि झादि जो .शब्द लगाए जाते हैं वे संस्कृत शब्दों के ही रूपान्तर हैं । रे




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