ज्ञानसूर्योदय नाटक | Gyansuryoday Natak

Book Image : ज्ञानसूर्योदय नाटक  - Gyansuryoday Natak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

Add Infomation AboutNathuram Premi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रथम अंक | पड है । देखो, दोयजके चन्दमाको सब कोई देखते हैं, परन्तु पूनोंके चन्द्रको कोई नहीं देखता है। ... सून्रधार--(रगमडपमें ) “ इस चैतन्यखभाव और अनादनंत आत्माफे सुसति और कुमति नामकी दो मानिनी खियां हैं । ड्न दोनोंसे मेम करके-दोनोंमें आसक्त रदकर इसने दो कुछ उ- फैल किये है। पहला कुछ जो सुमतिसे उत्पन्न हुआ है, उसमें प्रवोध, विवेक, संतोष और शील ये चार पुत्र है, और दूसरा कुछ जो कुमति महाराणीके गर्भसे हुआ है, उसकी मोह, काम; क्रोध, मान और ठोभ ये पांच सुपुत्र शोभा बढ़ाते है 1” नठी--दे आयेपुत्र ! आत्मा यदि पहले सुमतिमें आसक्त था, तो फिर कुमतिमें केसे रत हो गया? !.. सुन्नघार--प्रिये! बलवान कर्मके कारणसे सब कुछ हो स- कता है । देखो, शाखम कहा है कि;-- लट्धात्मवृत्तोडपि हि कर्मयोगादू' भूयसततों स््रर्यति जीव एप४ । लब्घाः स्त्रकीयप्रकृते? समस्ता- ध्स्द्र* कढाः किं न मुमोच लोके ॥ जर्थात--''यह जीव अनेकवार आत्माके ख़भावकी प्राप्ति कर- एप झपतषकों दोयजको जन बन्दमा निकठता है, तब १५ िनके बाद घुक्षपक्षकी दोयजकों जब चन्द्रमा निकठता है, तब १५ दिनके याद निकलता है. अयांत्र उसके पहले अँधिरे पाखमें उसके दशैन नहीं होते हूं। इसलिये अट्पूर्व होनेके कारण उसे सब देखते हें । परन्तु पूर्णिमाके चन्द्रमाको कोई नहीं देखतां । क्योंकि उसके पहले १५ दिनसे वदद दररोज दिखा करता है। रोज २ दिखनेसे उसमें प्रीति नहीं रहती हैं। . २ पूर्वकारूफी ल्ियों अपने पतिकों “आर्यपुत्र” कहकर सम्बोधन करती थीं । हा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now