संस्कृत वाङ्मय का हिन्दी-रामकाव्य पर प्रभाव | Sanskrit vāṅmaya Ka Hindi Ramkavya Per Prabhav

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Sanskrit  vāṅmaya Ka Hindi Ramkavya Per Prabhav by डॉ. ज्ञानशंकर पाण्डेय - Dr Gyanshankar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय अनुप्रेरित ग्रन्थ संस्कृत वाडइमय से प्रेरित और प्रभावित हिन्दी के रामपरक ग्रन्थों में सूर- सागर का रामचरित रामचरितमानस रामचन्द्रिका गोविन्दरामायण साकेत विशेष महत्व रखते हैं । प्रस्तुत अध्याय में इन्हीं प्रमुख ग्रन्थों के वस्तुविधान का विवेचन किया गया है । १. सर का रामचरित सुरसागर . के अन्तगेंत रामकथा का वर्णन नवम स्कन्ध में पद संख्या १४ से १७२ तक १५८ पदों में हुआ है। इसके अतिरिक्त गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित सूर रामचरितावली में रामकथा से सम्बन्धित १८८ पद मिलते हैं । स्वयं कवि के अनुसार यह रामचरित शुकदेव मुनि द्वारा वर्णित भागवती कथा पर आधारित है । भागवत में नवम्‌-रकंघ के दशम्‌ और एकादश अध्यायों से रामचरित का वर्णन मिलता है । अनेक प्रसंग जो भागवत के रामचरित में नहीं वर्णित हैं किन्तु सूर की रामकथा में उपलब्ध हैं उनका सम्बन्ध संस्कृत वाडइमय के अन्य विभिन्न स्थलों से है । हाँ कुछ प्रसंग अवश्य ही कवि की मौलिक उदभावना के परिणाम हैं । सुरसागर की रामकथा एवं उसके अनुप्रेरित स्थलों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है --- १... नागरी प्रचारिणी सभा काशी से प्रकाशित संम्पादक श्री नन्ददुलारे बाजपेयी । २. दशरथ नुपति अयोध्या राव । ताकें गृह कियो आविर्भाव ॥। तप सों ज्यों सुकदेव सुनायो। सूरदास त्योंही कहि गायो।। हि सूरसागर 6/१४५




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