नई तालीम - | Nai Talim -
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
575
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमास होना चाहिए । हम अन्य पहलुओं को उपेक्षा नहीं कर सकते । व्यावहारिक
विज्ञान अभी विकास को आरम्मिक अवस्था में है । सम्मवत ছল विज्ञानों के
विकास से हम व्यवित ओर समाज को गहराई से समम सकेंगे ।
आचाय॑ विनोवा भावे कहते आये हैं कि बाघुनिक ससार में विज्ञान और
अध्यात्म ने राजनीति और घर्मं का स्थान ले लिया है | यहू वात हमारे लिए
बड़ा महत्त्व रखती है । नेहरूजी ने हमारे जैसे समा के लिए इसका महत्त्व
समभा । यदि हम घमम का अय॑ रूडिवाद, अन्पविश्वास और ऐसी हो बात से
लमान है, तो हमे इन्हे दूर करने का मरसक प्रयत्न करना चाहिएं। मानव-जीवन
में अध्यात्म का थाड़ा पुट आवश्यक है। विज्ञान ने अमी ऐसी कोई ओषधि पेंदा
नही की है, जिससे मानव में अच्छे गुण आये और न ऐसी कोई ऐन्टीबायोटिक
ईजाद हुई हैं, जो कट्टरता को हटा सके ।
हमारी सम्पता बहुत प्राचीन है, इसलिए हमारे छोग परम्पराओ में डूबे
हुए है। लेक्नि हमें समस्याएँ बहुत समझ-वूककर सुलूमानो हैं । बजाय इसके
कि हम अपना समय दूसरों की कमी जताने में व्यतीत करें, हमें विज्ञान ओर
देवनोछाजी के कुछ रचनात्मक काम ओर लाभ करके दिखाने चाहिए। गांधीजी
कहां करते ये--गरीव के लिए ईश्वर रोदी या चावल के निवाले में ही प्रकट होता
है। इससे पहल कि ইন লাহা करें कि लोग रूढिवादिता छोडें ओर वैज्ञानिक
रुख अपनायें, हम अपने से यह भी पूछ लें कि हमने कहाँ तक उन्हें जीवन की
आवध्यकताएँ--भोजन, कपड़ा, मकान यानी आधिक सुरक्षा प्रदान की है ।
स्वदेशी कौ भावना
ইহা में ऐसी भावना भी व्याप्त है कि हर विदेशों माछ देशी माल से अच्छा
है ! यह भावना हमारे विज्ञान ओर टेवनोलाजी के क्षेत्र में भो है । यदि किसी
माल पर विदेशी नाम की छाप ही हो तो उसके दिकने में कोई अड्चन नहीं ।
स्वदेशी की भावता जो स्वतत्रता के पहले इतनी प्रवत थी, अब बहुत कम
दिखायी देती है । शायद इसके लिए गाघोजी को फिर भारतवपं में जन्म
हेता होगा !
स्वदेशी की मावता का यह मतलव नहीं कि जो तकनीकी जानकारी
जानी-बूफ्ी हो और बाहर से मिरु सक्ती हो, उसका हेम पुन माविष्करार करें
मौर हमारे जो सीमित साधन हँ, उनको इममे छगाये रहे । यदि राष्ट्रीय हितो
को ठेख छगे बिना हम विदेशों से टेक्नोलाजी ले सक्तते हैं तो उसे छेने में कोई
हज नहीं होता चाहिए । दष टेवनोलाजी को केने पर मी हमारे वैज्ञानिकों का
महत्त्व कम नहीं होगा, क्योकि उनका काम इस विदेशी टेक्नोलाजी को देश
को जरूरतो और परिस्थितियों के अनुसार डालना হা 1
देश में देशानिक जनमेत तैयार करने को जरूरत जितनी इस समय है,
२५५ ] { नौ तालीम
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