जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान | Jain Darshan Aur Adhunik Vigyan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
मुनि श्री नगराज जी - Muni Shri Nagraj Ji
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सोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर्शाद प्रोर विश्ञात
समभने की भूमिका बनाता जाता है । वैज्ञानिक जगत में यें शब्द झाज चारा धार
गूंजने लगे हें--- ।
“हम लोग हमारे भरज्ञान फा फंलाव कितना बड़ा है, यह् भौर अच्छी तरह से
समने श्रौर महसुस करने लगे है १
सर ेम्सजीन्स लिखते हैं--“शायद यहे अ्रच्छा हो फि विज्ञापन नित नई
घोषणा करना छोड़ दे, क्योंकि ज्ञान फी नदी बहुत बार श्पने झ्ादि-भोत की জীব
बह चुकी है ।”*
एक दूसरी जगह वे लिखते हैं--“बीसवीं सदी का महान झाविष्कार सापेक्षघाद
या कवन्तम् सिद्धान्त नहीं है और न परमाणु विभाजन ही। इस सदी फः महन
झाविष्कार तो यह हूँ कि चस्तुएँ बसी नहीं हैं जंसी कि वे दोखती हैं ।॥ इसके धाय
सर्वमान्य वात तो यह है, हम श्रब तक परस वास्तविकता के पास नहीं पहुँचे हैं ।/ 3
इस प्रकार हम सहज ही इस निर्णय पर पहुँच जाते हैं कि विज्ञान ने दर्शन
के साथ बगावत कर परम सत्य तक पहुँचने का जो एक स्वतन्त्र मागं निकाला धा
वह भी इतना सीधा नहीं निकला जितना कि समका गया था । फिर भी हमें समझ
लेना चाहिए कि दर्शन और विज्ञान में संघर्ष से कहीं अधिक समन्वय है | दर्शन के पीछे
जैसी एक बहुत लम्बी ज्ञान परम्परा है विज्ञान में सत्य-प्रहणा की एक उत्कट लालसा
है | जो असत्य लगा उसे पकड़े रहने का आग्रह वैज्ञानिकों ने कभी नहीं किया। दर्शन
ने जैसे आगे चलकर अनेक पथ वबनाये--यह वेदिक दशन , यह बौद्ध दशन , यह
जैन दर्शन! आदि, इस प्रकार विज्ञान के क्षेत्र में अब तक विभिन्न मार्गों का उदय
नहीं हुआ । सभी वैज्ञानिक झ्राज नहीं तो कल एक ही मार्ग पर आ जाते हैं । जीवन
में उपयोगिता की दृष्टि से भी दर्शन और विज्ञान दोनों का स्वतन्च्र महत्त्व है 1 दोनों
ही सत्य की मल्जिल पर पहुंचने के मागं हुं परन्तु दशेन का विकास मुख्यतया भ्ात्म-
1. 2৩ 216 7606 ৮9 85007501266 1066667, 210.0016 (1১010051010,
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