वीर बालक | Veer Balak

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Veer Balak by घनश्यामदास जालान - Ghanshyamdas Jalan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वीर वालक लूच-कुश १५ अश्वके आ जानेपर यज्ञका प्रारम्भ हुआ | दूर-दूरसे ऋषि- गण अपने शिष्योंके साथ अयोध्या पधारे । महर्पि वारमीकिं भी लव-कुश तथा अपने अन्य शिष्योंके साथ आये ओर सरयूके किनारे नगरमे इछ द्र सवके साथ ठरे | महर्पिके आदेशसे কন-ুয় मुनियोंके आश्रमोंमिं, राजाओंके शिविरोंम तथा नगरकी गलियोंमें रामायणका गान करते हुए घृमा करते थे। उनके स्पष्ट, मधुर एवं मनोहर गानकों सुनकर लोगोंकी भीड़ उनके साथ लगी रहती थी । सर्वत्र उन दोनोंके गानकी ही चर्चा होने लगी। एक दिन मरतजीके सथ श्रीरामने भी राजमवनपर उपरसे इन दोनों बालकोंका गान सुना | आदरपूर्यक दोनोंको मीतर बुला- कर सम्मानित किया गया ओर वहाँ उनका गान सुना गया | अठारह सहस्न खर्णप॒द्राएँ पुरस्कारखरूपमें उन्हें भगवान्‌ रामने देना चाहा; किंतु लव-कुशने कुछ भी लेना अस्वीकार कर दिया। लव-कुशके कहनेसे यज्ञकायय से बचे समयमें रामायण-गानके लिये एक समय निश्चित कर दिया गया | उस समय समस्त प्रजाजन, आगत नरेश, ऋषिगण तथा वानरादि रामायणका बह अद्भुत गान सुनते थे। कई दिनोंमे पूरा रामचरित्र सुननेसे सबको ज्ञात हो गया कि ये दोनों बालक श्रीजनककुमारी सीता के ही पूत्र हैं। मयोदापुरुपोत्तमने श्रीजानकी जीको सब लोगोंके सम्मुख सभामें आकर अपनी शुद्धता प्रमाणित करनेके लिये शपथ लेनेको कहकर बुलव॒ण्या | वे जगज्नती माता जानकी वहाँ




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