पत्थर के देवता | Patthar Ke Devta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ क द्वारा विश्वास नहीं उपजाया जा सकता । तकंके बछ्पर न तो
क्रिसीमे नारी-प्रेम जागता है और न मन्दिरमें जाने की ग्रेरणा ।
विश्वास और प्रेम इत्यादिका सम्बन्ध बुद्धिसे नहीं, छदयसे होता है। इसी-
लिए, यद्यपि बने हुए विश्वासोंको अनाए रखनेके लिए बुद्धिसे काम लिया
जा सकता है, किन्तु नए विश्वासोंकी जगानेके छिए तो अन्तरमे उथल-
युथल होनी चाहिए | अन्यथा बुद्धिके पतरे वेकार जाते हैं। विश्वास एक
चेक्षकी नाई डगता और पनपनाता है। उस वृक्षकी शाखाएं वेशक
आकाशकी ओर फंली हों, उसकी जदं तो व्यक्तिके नियूढ़ मानसमें दी
रहती हैं। उस नियूढ् मानस तक तकंकी पहुंच नहीं हो पाती । वहाँ
तो मानव-जातिके युग-युगान्तरके संस्कार ही राज्य करते हैं | ।
.. इसलिए भें नहीं कह सकता कि में बुद्धिसि सोच-विचार कर कम्युनिस्ट
पाटीका मेम्वर वना | वस्तुतः भ एक विखसती दुई समाज-व्यखाके बीच
रहता हुआ क्रिसी नए चिच्वासकी खोजमे था । माक ओर टेनिन°
का नाम सुननेके बहुत दिन पहिले ही मेरे अन्तरं कम्युनिष्मके अंकुर
फूट आए थे। जिस युगमे वे अंकुर मेरे अन्तरमें फूटे, उस युगम और
मी अनेकोनि कम्युनिस्ट वननेकी पेरणा पाई थी । इस प्रकार मेरी कहानी
१. कम्युनिज्मके जन्मदाता, एक जमेन यहूदी । २, रूसमें १५१७
की क्रान्तिके कणधार । ` `
পাত পতি ৬ এ: ০১৭
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