मानव - धर्म | Manav Dharm

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Manav Dharm  by हनुमानप्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११) (9) किसी कामम रुपया खग गया, पासमें है नहीं, न देनेसे इजत जाती है, बड़ा भय है, प्रायः भले-मले आदमी ऐसी अवस्थामें पैये छोड़कर आत्महृत्यातक कर बैठते हैं । अथवा पापी अधिकारी कहता है, 'तुम सत्य बोलोगे तो मार दिये जाओगे ।' 'भगवानका नाम छोगे तो जीम काट ली जायगी ।' “धर्म नहीं छोडोगे तो दीवारमें चुनवा दिये जाओगे ।! (तुम अपना सतीत्व त्यागकर व्यभिचारमें प्रदत्त न होओगी तो सिर उड़ा दिया जायगा ।' ऐसी धमकियोंमे मनुष्य प्राणभयसे घैर्यको छोड़ देता है । इस अवस्थामें जो घैर्यको सँमाछ्ता है, षै उसके धर्म, परलोक ओर कीरतिकी रक्षा करता है । (८५) एक रोगी है, उसे मीठा खानेका व्यसन है, पेठमें बीमारी है, वैचने मीठा खानेके लिये मने कर दिया है परन्तु वह नही मानता। मीठा देखते ही उसका घैर्य छूट जाता है और परिणाममें मृत्युका ग्रास होना पड़ता है | (६) प्रह्मादका शरीर हाथीसे कुचलवाया जाता है, सॉपोंसे कटवाया जाता है, गुरु गोविन्दसिहके बालक-पुत्रोंकी दीवारमें जीते जी चुनवाया जाता है, ऐसी अवस्थामे घैये रखनेसे ही आजतक उनका नाम अमर है। घैय न रखनेवाछा थोड़े समयके लिये शारीरिक कष्टसे भले ही मुक्त हो जाय, परन्तु उसका परिणाम बड़ा ही दुःखद होता है ।




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