मानव धर्म | Manav Dharm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Manav Dharm by ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad

Add Infomation AboutBrahmachari Shital Prasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मानव-धम- १२ देसे प्रासुक, गर्म या उवे इए पानीको उसकी म्यादके भीतर काममे ले लेना चाहिये। जिस पानीमें शंका हो कि यह गन्दा है, उस पानीको छानकर फ़िर उबालकर और फिर छान करके ठंडा करके पीना उचित है। इससे रोगोंकी उत्पत्ति नहीं होगी। हमें बाछक बालिकाओंको ऐसा ही शुद्ध छना इञा पानी पीनेकों देना चाहिये | बहुतसे रोग पानी पीनेकी मूछसे हो जाया करते हैं। पानीकी सावधानी इस जीवनके लिये बहुत आव- सयक है। जो छोग बिना विचारे चाहे जहाँका पानी बिना छाने पी ल्या करते है, वे बहुधा पानके भीतर पाए जानेवाले कीटाणुओंके शिकार बनते हैं और अपनेको रोगी बना छेते हैं । ४-भोजन । द शी स्थिरताके लिये भोजन वही करना उचित है जो निरोगी तथा बल्प्रद हो और जिसकी प्राप्तिमं हिंसा, जहाँ तक हो न की गई हो अथवा बहुत अल्प की गई हो । इस छोकमें जैसे हवा और पानी स्वभावसे ही मानवोके ग्रहण करने योग्य हैं, वैसे ही स्वभावसे दक्ष -जातिसे जो धान्य, फल था मेवा पैदा होते है, वे मानवके खाद्य हैं। मानवोंका आहार मांस या मद्य नहीं है ।. भोजनके लिये भी हमें नाक और जबा- नसे प्रछना चाहिये | जो पदार्थ अपनी असली दशामें नाकको सुगंधित और जबानको स्वादिष्ट लगें, वे ही ग्रहण करने योग्य हैं । कच्चा मांस ओऔर शराब दुर्गधयुक्त होते हैं। नाक इन्हें कभी मंजूर नहीं कर सकती । जिसे नाकने कबूल नहीं किया, उसे ज़बान कभी स्वीकार




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now