प्राकृत - हिंदी कोश | Prakrit-hindi Kosh

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Prakrit-hindi Kosh by पं. हरगोविंदास त्रिकमचंद - P. Hargovindas Trikamand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकृत-हिग्दी कोश की सस्पादन पाइय सद्द महण्णवो की इस किल्चित्‌ परिवर्तित आवृत्ति में अपनाये गये नियम । यदि मूल दाब्दो के वर्णों अथवा अर्थ में किसी प्रकार का भेद परिवतंन या विशेपता नहीं हो तो निम्न प्रकार के शब्द एवं उनके रूप निकाल दिये गये है । दे जम १० श्र श्र. शहर श्भ प्राकृत ग्रन्थों मे से उद्धृत अवतरण मर्थों के साथ दिये गये संख्यावाची अक भेद न रखने वाले एक से अधिक अथं जैसे -- मस्तक सिर हस्त हाथ हस्ति हाथी . अनावदयक व्णंनात्मक विस्तार . सादृष्यता बतलाते हुए भाघुनिक भाषा के दाब्द . प्राकृत शब्द के सामने कोष्ठक मे दिया गया संस्कृत शब्द यदि वह तत्सम है जैसे--उत्ताल काम ताल वायस समूह मा या ई प्रत्यय लगाकर बनाया गया स्त्रीलिंगी दाव्द यदि उसका अन्य लिंगी शब्द भा गया हो जैसे--पुत्त पुत्ती अणुमासण अणुमासणा अमर भमरी कभी-कभी भावद्यकतानुसार ऐसे शब्द जिनमे न या न हो जबकि ण या ण्ण वाला वही शब्द भा गया हो जैसे--मणुस्स मनुस्स पुण्ण पुन्न दाब्द में तृतीया या पंचमी विभक्ति लगाकर बनाये गये अव्यय जैसे--अइर भइरेण अग्ग अग्गओ मूल बन्द आ जाने पर उसमे स्वार्थ अ य अथवा ग लगे हुए दाव्द जेसे--अगुरु अगुरुअ अर अरग अंगुलीय अंगुलीयय भट्दू इ प्रत्यय लगाकर बनाये गये दाब्द जो घारण करने श्वृत्ति करने या स्वामित्व के अर्थ वाले हो जैसे--अणुभव भणुभाव भक्खा अवखाइ संसय संसइ इर प्रत्यय लगाकर बनाये गये शीलवाची शब्द जैसे--अणुगम अणुगमिर मुअ मुइर भी भोइर इल्ठ इल्लग इल्लय उल्ल एल्ल एल्लग प्रत्यय लगाकर बनाये गये स्वार्थ दब्द जैसे--पुत्त पुत्तिल्ल पुतुल्ठ वाहिर बाहिरिल्ल सच्च सच्चिलय भंड भंडुल्ल अंध अंधिल्लग अंघेल्लग हमउल्ल मूल धातु के साथ दिये गये उसके अनेक कालवाची एवं कृदन्त रूप अलग-अलग स्थलों पर भाने वाले कृदन्त रूप जिनका मूल धातु भा गया हो ।




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