हस्त - रेखा | Hast Rekha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिसी एकाध पुस्तक को पढ़कर ही अपने-थापकों पंडित शत समझिये रेयाणों का सिद्धान्त समझने के साय-ताथ उसका व्याव- डारिक शाग भी परमावश्यक है। बाजार में ज़ो इस वियय में पुस्तकें उपलब्ध हैं उनमें से मुक्ते कोई भी पुस्तक प्रामाणिक नजर नहीं थाती । अधिकतर ऐसी पुस्तकें या तो अगुवादमाम हैं अथवा पाश्नातंय ज्योतिदिदों का पिप्टपेयण । ने तो वे परिधम से अध्ययन लौर जनु+ भय करते है न ही मनुभव नो लेखनी से व्यक्त करते हैं। कीरो सेंट जारमन बेग्यम नोएल येक्विन भादि हम्तरेंखा-विशेषज्ञो फ्री पुसाकें वाजार में उपलब्ध हैं परन्तु इनमें से भी कोई पुर्णतया प्रामा- शिव नही अनुभद कर अभाव इनमें भी दृष्टिगोपर होता है । मैंने जीवन में हजारो गही नाथों हाथ देखे हैं लादों हाथों के प्रिंदों का अध्ययन क्या है इसमें स्वदेश तथा विदेश राभी जगह के व्यक्ति हैं तया समाज के सभी स्तर एवं श्रेणी के लगी के हाथ देखने का शबसर मिला है लोर पर मैंने जो मविष्यवाधियाँ की हैँ वे शत-ग्रतिशत ही उतरी है। पाठक देशेंगे कि भन्य पुस्तकों की अपेक्षा इस पुस्तर में कुछ नदीनता है व्यावहारिक शाम का अनुभव इसमें विधमान है और विषय का विवेचन वैज्ञानिक पथ्चति पर करके दिधय को बनाने की मयदत किया है को चाहिए कि ने सिद्धार्तरूप में रेखाओं का शात प्राप्त करें और फिर व्यावद्ारिक अनुभव य्राप्त करें तभी वे फला- देश बह सकने में समयं होगे और उनकी दाणी कालयजी यन सकेंगी । ह्ाथ्द बनाई की सीमा पर से आगे छंगलियों के छोर तक का भाग हाम कहलाता है और यही भाग हस्तरेखा के अध्ययन




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