हिंदी - गीति - काव्य | Hindi Giti Kavya

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Hindi Giti Kavya by ओमप्रकाश अग्रवाल - OmPrakash Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= अ ॥ = प = তা চাউভচাউউউডউজহড है य विषयप्रवेश ` £. छन्दो के चरण मिलाकर भी नवीन छन्द बना लिए जाते हैं ) कोई নিহীন- निर्धारित नियम नहीं है | पिंगल शाखसत्र का इतना ही पालन किया जा रहा है कि चरणों में मात्राएँ समांन होती हैं और सम्पूर्ण गीत के भिन्न भिन्न पद भी एकते हयी होते है । कभी पिंगल शाल के किसी भी छुन्द विशेष का प्रयोग नहीं मिलता | केवल लथ के आधार पर १२, १४ या १६ आदि मात्राश्रों के चरण बना लिए जाते हैं | ऐसे छन्दो को कुद भी नाम नहीं दिया जाता। मुक छन्द का गीति काव्य में अधिक प्रचार नहीं, क्योंकि उसमें संगीत का सुन्दर प्रदशन नदीं हो पाता । केवल लय के आधार पर ही संगीत का प्रसार पण तया नदीं दौ सकता | अन्तरज्ञ॒ दृष्टि से भारतीय गीतिकाव्य और विशेषकर हिन्दी गीति-. काव्य दो प्रकार का है। कवि अपने श्रध्यात्मिक विकास के लिए चित्तवृत्ति के सयंम से गीति-काव्य में अपने कल्याणकारी उद्‌गारों को व्यक्त करता है } उसे संसार से कोई विशेष सम्पर्क नहीं रखना पड़ता | आत्म-सन्तोष के लिए भक्ति-भाव अथवा दार्शनिक एवं धार्मिक विचारों में विहल होकर गीत की सृष्टि करता है | उसे गीत में एक अलौकिक ज्योति की अनुभूति होती रहती है और उसके अन्‍्तःकरण में प्रकाश की उज्ज्वल किरणों प्रसारित होने लगती हैं। वह अलौकिक आनन्द में तन्‍्मय हो जाता है । इस प्रकार के गीत पदों के रूप में मिलते हैं | दूसरे प्रकार के गीतों में धामिक दृष्टिकोण कोः स्थान नहीं दिया जाता । न उसमें आत्म-कल्याण की भावना ही प्रधान रहती है| वाह्य संसार के अन्तःकरण में अपने अन्तःकरण का तारतम्ब्‌ ` मिला कर कवि मनोरजञ्जन के लिए गीत की रचना है। उसमें प्रकृति के रूप-- सौन्दर्य की चरम अ्रभिव्यक्ति होती है, जिसकी सूक्ष्मता में कवि का अन्तजंगत छाया की भाँति साथ साथ चलता है। इस प्रकार के गीतों में श्राघुनिक कवियों को महान सफलता मिली हैं। उन्हों ने अपनी कल्पना की उच्च उड़ान में वाह्य संसारं को- प्रकृति को अपने अन्तस्तल में मिला कर उससे एका- कार प्राप्त कर लिया है, जिसमे उन्हे परम-सत्ता कौ श्रानन्दमयी, सौन्दयं युक्त शामा कौ श्रनुमूति दोती है । उन्दने मनोविज्ञान के्राधार पर च्रपने म्बः




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