कुंभनदास | KumbhanDas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९. संक्रांति के पर्च में तीथयात्रा के समय इनके पिता को पुत्रम्राप्ति का छाशी- घाद किसी मदास्माने द्विया, निके सस्मरण में इनका ' कुमनद्‌ास' नामकरण किया गया था । इनके पिता गौरवा क्षत्रिय वे । पिता का नाम लौर परिचय प्राप्त नहीं होता | ' धर्मदा › नामक नके एक काका ये-जो एक धमैश्ीर ज्यक्ति थे । सभवत; पिता के दिवंगत दो जाने पर कुभनदासजी पर उनके काका की धार्मिक वृत्ति का क्षघिक्त प्रभाव पड़ा । 'परासौली' गाँव के पास थोडी सी भूमि दस वश ॐ लधिकार में थी, जह रह कर यह श्चपना निर्वाह्द चलाते थे । कृपि के द्वारा ही कुटम्ष का निर्वाह द्वोता था। श्वदत्ति› [नोकरी द्वारा जीवन-निर्वादह कुंभनदासजी फो क्षमीण्ट नहीं था। “ यावद्नव्घेन सनन्‍्तोप ? के कनुसार साधारण रूप में कुट्ठम्ष का परिपालन कर लेने में ही इन्दें श्ानन्द एवं कात्म-गौरद का क्षनुसद होता था । घम्मदाप की धार्मिक चर्या से वाल्यावस्था में ही सगवदू-मक्ति एवं सदाचरण की भोर इनकी प्रवृत्ति हो गई थी। सांसारिक वादं-विवादों, झगडा-झझ्तटों कौर हैप्यौ-द्वेप से जीवन को कटहु बनाना उन्हें कषसीष्ट नहीं धा। उनझो याक्ष्यक्ाल से द्वी गुद्दासक्ति नहीं थी। धसत्य भापण घोर पापकर्म से सदा दूर रहकर सीधे-साथे प्जवासियों की रीति से रहना इनकी एक विशेषता थी। क्षध्ययनादि को न्यूनता होने पर भी फधा-शास्र-पुराणादि-भ्रवण के द्वारा वहुश्रतता मोर गमीरक्तान दर्द प्राप्त हो गया था-यद्द मानना द्वी पढेगा | चाहे सत्संग से हो, चाहे क्षध्य- यन से ? इनका साहित्य-सगीत-कछा का ज्ञान पराक्राँप्टा को पहुंचा हुआ था, इनसे कोड शंका नहीं हे। पदरचना-शैली, संगीत-सेचा कौर प्रस्थाति से सद्दज ही हुस कथन की पुष्टि होती है । समय काने पर इनका विवाह हुआ | “ जेत * गाव के पाम ' घहुला चन * में इनका ससुराल था। इनऊी स्त्री यद्यपि साधारणतया ग्रामीण थी पर उच्त पर इनची संगति का भ्रमाव पड़ा, जिनके कारण इन्द गृ्स्याघ्रम कभी सेवा सें प्रतिचन्‍्धक सिद्ध नहीं हुआ | * লিল बन्धुओं'ने इन्हें गोौरवा ब्राह्मण लिखा है जो-यैक नहीं ह । इनकी जाति और वद् ঈ কই ভীম অব লী লল বখা ঈনাত্ত में विद्यमान हे ।




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