कुंभनदास | KumbhanDas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९.
संक्रांति के पर्च में तीथयात्रा के समय इनके पिता को पुत्रम्राप्ति का छाशी-
घाद किसी मदास्माने द्विया, निके सस्मरण में इनका ' कुमनद्ास'
नामकरण किया गया था ।
इनके पिता गौरवा क्षत्रिय वे । पिता का नाम लौर परिचय प्राप्त नहीं
होता | ' धर्मदा › नामक नके एक काका ये-जो एक धमैश्ीर ज्यक्ति
थे । सभवत; पिता के दिवंगत दो जाने पर कुभनदासजी पर उनके काका
की धार्मिक वृत्ति का क्षघिक्त प्रभाव पड़ा । 'परासौली' गाँव के पास थोडी
सी भूमि दस वश ॐ लधिकार में थी, जह रह कर यह श्चपना निर्वाह्द चलाते
थे । कृपि के द्वारा ही कुटम्ष का निर्वाह द्वोता था। श्वदत्ति› [नोकरी
द्वारा जीवन-निर्वादह कुंभनदासजी फो क्षमीण्ट नहीं था। “ यावद्नव्घेन
सनन््तोप ? के कनुसार साधारण रूप में कुट्ठम्ष का परिपालन कर लेने में
ही इन्दें श्ानन्द एवं कात्म-गौरद का क्षनुसद होता था ।
घम्मदाप की धार्मिक चर्या से वाल्यावस्था में ही सगवदू-मक्ति एवं
सदाचरण की भोर इनकी प्रवृत्ति हो गई थी। सांसारिक वादं-विवादों,
झगडा-झझ्तटों कौर हैप्यौ-द्वेप से जीवन को कटहु बनाना उन्हें कषसीष्ट
नहीं धा। उनझो याक्ष्यक्ाल से द्वी गुद्दासक्ति नहीं थी। धसत्य भापण
घोर पापकर्म से सदा दूर रहकर सीधे-साथे प्जवासियों की रीति
से रहना इनकी एक विशेषता थी। क्षध्ययनादि को न्यूनता होने पर भी
फधा-शास्र-पुराणादि-भ्रवण के द्वारा वहुश्रतता मोर गमीरक्तान दर्द
प्राप्त हो गया था-यद्द मानना द्वी पढेगा | चाहे सत्संग से हो, चाहे क्षध्य-
यन से ? इनका साहित्य-सगीत-कछा का ज्ञान पराक्राँप्टा को पहुंचा हुआ
था, इनसे कोड शंका नहीं हे। पदरचना-शैली, संगीत-सेचा कौर प्रस्थाति
से सद्दज ही हुस कथन की पुष्टि होती है ।
समय काने पर इनका विवाह हुआ | “ जेत * गाव के पाम ' घहुला
चन * में इनका ससुराल था। इनऊी स्त्री यद्यपि साधारणतया ग्रामीण थी
पर उच्त पर इनची संगति का भ्रमाव पड़ा, जिनके कारण इन्द गृ्स्याघ्रम
कभी सेवा सें प्रतिचन््धक सिद्ध नहीं हुआ |
* লিল बन्धुओं'ने इन्हें गोौरवा ब्राह्मण लिखा है जो-यैक नहीं ह ।
इनकी जाति और वद् ঈ কই ভীম অব লী লল বখা ঈনাত্ত में विद्यमान हे ।
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