शास्त्र - चन्द्रिका | Shastra Chandrika

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Shastra Chandrika by श्री स्वामी दयानन्द - Sri Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बेद। ि सददस्त्रसंख्यया जाताः शास्ता सारन परन्तप 1 झधर्वस्य हु श्खाःस्थुः पश्धाशद्ञदतों हरे ॥ ऋग्वेदको २१ शाखाएँ यजु्देदव्टी १०४ सामवेद्क्ी १००० शौर झधव्वंकी ५० शाखाएँ हैं। परन्दु महीन शोकका विषय है कि चर्चमान कालप्रावके कारख वेदौच्ी इतनी शाखाएँ रदनेपर थी झाजकर्ल केवल सात झाठ शाखाएँ इष्टिगोचर हो रही हैं। चेदका झाविभाव तिरोभाव जीवोंके क््माचुलार हुआ करता है। चत्तमान सुष्टिके इस फररकी जितनी शाखाओंसें अपौरुपेय वेदका विस्तार हु था उन प्रत्येक शाखाश्यों के स्वतन्त्र स्वतस्त्र मन्त्रभाग बाह्मसभाग श्वाररयकमाग श्रौर उपनिषद्भाग वेदाजमें सूत्र श्र घातिशाख्यके मेदसमूदपर ही दिचार करनेसे परिज्ञात होगा कि इस कटपमें भी वेदों का कितसा मदान्‌ विस्तार था । खबेजीव हित कारी वेदों में ज्ञानसम्वन्घीय अनन्त विपय रहनेपर भी विज्ञानसर्वन्घीय गढ़ रहस्य हैं। अपि च वेदौकी भाषा बहुत सारगर्भ संक्षिप्त गम्भीर श्रौर वैज्ञानिकभावयुक्त दोनेके कारण साधारण बुद्धिगम्य नहीं है। इसी कारण श्रपदर्शी विद्वान लोगों के बहुधा देदार्थ समकनेमें विचलित होनेके कारण उनमें मतमेद शरीर घ्रनेक सन्देदद तथा परादकी बुत्तियोका उदय हुझा च्रन्मरूपी देव करता है। परम्तु यधायंमें शः चिंघान्‌ त्रह्मरुप ही हैं। जिस प्रफार एक झाद्धिसीय घह्म त्रियुणसेदाजुसार घ्रह्मा विष्छु शरीर शिवरूप घ्रिदेवसूर्ति घारण कर सुष्टिकी डत्यत्ति स्थिति झोर लयंकाय्पी किया करते हैं उसी प्रकार श्पौरुपेय वेद मी उपासना कर्म्म और ज्ञावके प्रकाशार्थ संदिता ब्राह्मण श्रौर उपनिपदुरूपी बिसूर्तिको धारण कर सकल संसारके कत्यायमें पदत वेद में विमक्त हैं। यथा--मन्चयाग ज्ञाझमणमाग दौर श्ार- ध् तीन भा सनक 1 श्मारणयक दी उपनिषद्का सूल है। श्रारण्यकर्म न्रह्मतत्वके दर




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