रूपक - रहस्य | Rupak - Rahasya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रूपक का विकास ४
लिये अपने अपने देवताओं का आराघन करते थे। वस यहीं से रूपक
के मूल गीतों और गीति-काव्यों का आरंभ हुआ, जिसने आगे चलकर
रूपके की सृष्टि ओर उसका विकास किया । जब इस गकार बहुत दिनों
লক্ষ आराबना करने ओर नाचने-गाने पर भी वे उन ऋतुओं तथा
दसरी नैसर्गिक घटनाओं में #िसो प्रकार की वाघा न डाल खके, तव
उन्होंने स्वभावतः समझ जिया कि इन सब वातों का संत्रंव किसी और
गूद कारण अथवा किसी ओर बड़ी शक के साथ है। वही शक्ति
+कर्सी निश्चित नियम के अनुसार ऋतुओं आदि में परिवत्तन करतो
तथा दूसरी घटनाएँ संघटित करती है। तव उन लोगों ने अयने नृत्य
गीत आदि का उहृश्य वदल्ल दिया ओर वे अपने वाल-ब्च्चों की प्राण-
रक्षा या घन-धान्य आदि को वृद्धि के उद्दश्य से अनेक ग्रकार के घार्मिक
उत्सव करने लगे | पर इन धार्मिक उत्सवों में भा नृत्य, गात आदि
की द्वी प्रधानता रदतो थी। यही कारण है कि संपार को प्रायः सब
आचीन जातियों में घन-धान्य की वृद्धि के लिप्रे अनेक प्रकार के उत्सत्र
आदि प्रचित थे | यूनान के एल्यूसिस नामक स्थान में सायनतुल्ला के
समय एक बहुत बड़ा उत्सव हुआ करता था, जिप्तका मुख्य पात्री डेमि-
टर देवों की पुजारिन हुआ करता थी । इसा प्रश्वार चान के मंदिरों में
भी फसल्न हो जाने के अनन्तर धामिऋ उत्सव हुआ कहते थे जिनमें
अच्छी फसल হীন ক ঘন में देवताओं का गुणानुवाद होता था
आओर साथ ही रूपक आदि भी होते थे।जिस देवता के मन्दिर में .
उत्सव हुआ करतः था, प्रायः उसी देवता के जावन को घटनाओं को
लेकर रूपक भा खेज्ञे जाते थे। मिंन्न-भिन्न स्थानों के देवता भिन्न-भिन्न
होते थे । उन देववाओं में से कुछ तो कल्यित होते थे ओर कुद्ध ऐसे
बीर-पुबज होते थे, जिनमें किसो देवता का कज्यना कर लो जातो थी।
एसी दशा में उन देवताओं के जीवन में से रूपरू को यथेष्ट सामग्रा
निकल अती थो। इसा प्रकार के उत्सव और शक बरमा अर जापान
आदि में भी हुआ करते थे । फछल हो चुकने पर तो एप्ते उत्सव और
रूपक होते द्वी थे, पर कहीं कहीं फसल बोने के समय भी इसी प्रकार
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