हिंदी भक्ति काव्य | Hindi Bhakti Kavya

Hindi Bhakti Kavya by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्ति साहित्य की दार्शनिक शरीर घामिक प्रछ्-भूमि भक्ति-साहित्य को समभाने ये लिए. उसये कोब्य-सुग् की थिधेचना ही प्रयातत नहीं रस साहित्य में घिपय का सहत्व काव्य-गुर्ण से कम नहीं है । चारतय में भक्तों का प्येय एफ घिशेष धामिक्र जगत्‌ की खुष्टि करना रहा दि । उनका साहित्य एक श्रोर उनकी साधना को व्यक्त करता है, ब्दों दूसरी छोर उसमें किसी हद तक प्रचार की भावना मी सल्निदिन दै । उनके दो दृढ़ श्ाधार हि । एफ दर्शन जिसकी प्रति्रा श्राचार्य फरते थे शरीर जिसमें घ्राप, जीव शरीर संसार एवं इन तीनों के सम्बन्ध पर विचार किया जाता था; दूसरे ने धर्म-भाव जो उस समय जन-साधारग में विशेष परिरिथतियों के कारण चल रहें थे दौर जिन समय-समय पर श्याचार्यों श्ीर धर्म नेताश्ों ने निचले स्तर से ऊपर उठाने की चष्टा की है | भक्ति-काल के प्रारम्भिक दार्शनिक विचारों के मूल में वीद्ध दर्शन को परास्त करने की चेटा स्पष्ट दिंखलाई देती है । श्रत: पढ़िले वीद्ध दर्शन की रूपरेखा दे देना उचित होगा | १ दार्शनिक ब्रादाणयुग के यश-याग, पशुवलि शरीर कर्मकांट ,के विस्द्ध उठ खड़ा जुछा था | बद्द कर्मकांड विरोधी शरीर श्र्ट्सिक था । श्रतएव बौद्ध दर्शन श्र्दिंसा को परमधर्म मानता था | उसके शनुसार शील, समाधि श्ीर प्रजायश ही उत्कृष्ट यश हैं |




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