सामुद्रिक शास्त्र या भाग्य निर्णय | Samudrik Shastra Ya Bhagya Nirny
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.41 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाग्य-परीक्षा । [१३
पितृरेखा में परस्पर तीन नक्षत्र चिन्द होने से मजुष्य
सख्री से अपमान, निन््दा और यन्त्रणा भोग करता है और
लोक समाज में अत्यन्त घृणा औरन उपहासास्पद समभा
ज्ञाता है ।
जिसकी पितृरेखा का निम्न प्रान्त मणिवन्ध के संमीप
चिदी्ण होता है चह्द व्यक्ति उदास प्रकृति का होता है।
जिस ख्री की पितृरेखा के ऊपरी .भाग में दो क्रास
( २ ) चिन्द रदते हैं वह नारी निर्लज्ञा, और . व्यसि'
चारिणी होती है ।
जिसकी मध्यमास्थान में विच्छिन .'होती
'है चद्द सांघा तिक रोग से पीड़ित होता है और बढापे में रोग
:से जीण होकर प्राण परित्याग -करता है ।
पितृरेखा के निस्नप्रान्त में सणिचन्ध के निकट यदि
' चिकोण का चिन्द दिखाई पड़े तो चह व्यक्ति चावल औो
मिथ्याभाषी होगा
पितूरेखा औरआयु रेखा के मध्यवर्ती स्थान के
ऊपरी भाग यदि चच्ध का चिन्द हो तो वह व्यक्ति ' उदार
चरित्र, सदाशय, चदान्य एवं शानी होता है । ऐसे व्यक्ति
राज-सभा तथा सम्ध्रान्त समाज में बड़ी सहायता से लंब्घ
प्रतिष्ठ हो जाते हैं।
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