प्राचीन भारत का इतिहास | Prachin Bharat Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.16 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत की सोगोलिक स्थिति भर उसको सॉस्कुलिक एकता ण् प्रभायित रहा हैं विन्ध्याचल का ढाण कुछ उत्तर की ओर है। विन्धयाचल की उत्तर-पूर्वी श्रेणियाँ वाराणसी के पास गगमा नदी से जा मिलती है । बिन्थ्याचल और राजमहरू की पहाड़ियों के बीच एक तग लम्बा मार्ग है जिसके पश्चिम में चनार और पूर्व में तेलियागढ़ी है । पश्चिमी और पुर्वी भारत के बीच सही सबसे महत्त्वपूर्ण मार्ग था अत इसका सामरिक मन्त्त्व बहुत रहा है। इस मार्ग की रक्षा करने के लिए ही रोहनास चूनार कालिजर और ग्वालियर के दुर्ग बनाए गए । इस पठार में दो समानान्तर पवत श्रेणियों है उत्तर में विन्ध्याचल और दक्षिण में सतपुडा परत । इन दोनों को नमंदा की घाटी अलग करती है । मध्य भारत के पठार ही उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अठग करते है। जो आदिम जातियां गगा-सिन्ध के मैदानों की शबितशाली जातियों की पका निवल थी उन्होंने दस पठार की पहाड़ियों और जगलों मे शरण ली और सफलतापूर्वक अपनी रक्षा को । बक्षिण का पठार दक्षिण का पठार विस्थ्याचल के कारण उत्तर भारत से अलग रहा है। यह दक्षिण में नील- गिरि तक फला हुआ है तथा रसके पुवे मे बगाल की खाड़ी और पश्चिम मे अरब सागर है। इस पढार का ढाउ पश्चिम से पु की ओर है। पश्चिम की ओर पश्चिमी घाट नाम के पहाड़ इसकी विदेशिय। से रक्षा करते रहे है। पर्वी घाट में बहुत-सी छोटी-छोटी पहाडियां हैं जिनके बीच में होकर महानदी गोदावरी कृप्णा और कावेरो आई नदियाँ पठार से पूर्वी तटीय प्रदेश की ओर बहती हैं । नमंदा और ताप्ती पश्चिम का ओर बहती है । इन नदियों में नाव चलाना सुगम नहीं है और ये सिचाई के लिए भी उपयोगी नहीं है । ठस प५़ार के उत्तरी भाग में बरार का प्रदेश है जो अपनी काली मिट्टी के कारण कपास उगाने के लिए बहुत उपयोगी है । प्ारम्भ मे इस भाग की सस्कति का विकास उत्तर भारत की सरस्कृति स बिना प्रभावित हुए सम्भवत स्वतन्त्र रूप से होता रहा होगा । किन्तु जाह्मण काठ से उत्तर और दक्षिण भारत में सार्कृतिक आदान-प्रदान होने लगा लौर कई अणा में द्विड और जाये सरकतिया हिलनमिलकर एक. हो गई है। उसर भारत के राजा स्थायी रुप से दक्षिण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित नहीं कर पाए। जब गुप्त राजा उत्तर भारत में राज्य कर रहे थे तब वामाटक राजाओं का दक्षिण भारत के उत्तरी प्रदेश में राज्य था और दक्षिण मे अमेक स्वतन्त्र राजा राज्य करने ये । दिटली के सुलतानों मे अलाउद्दीन खिलजी मे देबगिरि और वारगल के राजाओं कोहराने के लिए अपनी सेनाएँ भेजी किन्तु शीघ्र ही दक्षिण की भौगोलिक स्थिति का प्रभाव एतिहास पर स्पष्ट दिखाई पड़ा । इस प्रदेश में बहमनी वंश और बिजयनगर के स्वतन्त्र राज्य स्थापित हो गए । सोलहबी शताब्दी के अन्त मे अकबर के समय से मुगठो ने इस प्रदेश पर अतिकार करने का प्रयत्न किया किन्तु अपनी मृत्यु के समय तमा भी औरगजेब पुरे दक्षिण भारत पर अपना अधिकार न कर सका । दक्षिण भारत के पबेत पार ओर नदी-घाटियों ने भारत के इस भ्गग को अनेक छोटे-छोटे प्रदेशों में बाँट दिया था । इसी कारण यहाँ बड़े साम्राज्य स्थापित न हो सके और दक्षिण भारत की यूद्ध-नीति और आर्थिक समृद्धि उत्तर भारत से भिन्न रही । दक्षिण भारत का प्रायद्वीप अफ्रीका और चीन के समुद्री मार्ग के ठीक सध्य में स्थित है। अत यहाँ समुद्री व्यापार एक भोर पूर्वी हीप समूह चीन आदि पूर्वी देशों से और दूसरी ओर पश्चिमी एशिया जक्रीका और मूरोप तक से होता था । इसी कारण पूर्वी देशो मे भारतीयों ने अनेक उप+
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