संघर्ष और प्रगति | Sangharash Or Pragati

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Sangharash Or Pragati by चन्द्रगुप्त विद्यालंकार - Chandragupt Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्धि की श हे ९७ किसी ने उन की कल्पना तक भी न की थी। संक्षेप में ये शर्ते इस अकार थीं-+“जमेनी से उसके यूरोपियन स्थल भाग का आठवां भाग 'छिन जायगा । अल्सिस लोरेन और सार के कोयले के क्षेत्र फ्रान्स को मिलेंगे। कम से कप्त १४ वर्ष तक उन पर फान्स का पूरा अधिकार रहेगा। पोलैण्ड को दक्षिण ओर पश्चिमी प्रशिया (२६० मील लम्बा और ८ मील चौड़ा भाग जो कोरीडोर के नाम से प्रसिद्ध है) मिलेगा ।' सिलेशिया का उपर का भाग जैचोस्ज्ञोवेकिया को मिलेगा और शेष भाग पोलैण्ड को | यूपन- मलमेडी चाहें तो जमेनी के साथ रहे ओर चाहे तो वेल्जियम| के साथ ।डेन्ज़िग ओर मैमललैण्ड को भित्रा के द्वारा नियत एक -कृमीशन के अधीन रक्खा जायगा ।“ जर्मनी के सम्पूण खनिज तथा अन्य उपयोगी उपज पदायै उस से चिन गए । लोहे और कोयले की कानें भी उस के दाथमें न रहीं । अफ्रीका आदि में डस के जितने उपनिवेश थे, वे सब उस से छिन गए उस के सम्पूर्ण जहाज़ भी उस से छीच लिए गए। अपनी नदियों पर भी उस का प्रभ्ुत्व नहीं रहा । निश्चय हुआ कि अपनी रक्ता के लिए १ लाख १४ हज़ार से अधिक ( १००००० स्थल और १४००० नौ) सेना जमेनी नहीं रख सकेगा। सई १६२१ तक जमेनी मित्रराष्ट्रों को १४ अस्ब रुपया अदा करेगा। दर्जन के तौर से जमनी इल कितना रुपया देगा, इस का निर्णय याद में होगा ।' सन्धि की २३१ वीं धारा थी--“/पिछले महायुद्ध में पमित्रराष्ट्रों को जितनी जन और घन की चति उठानी पड़ी है,




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