मनुस्मृति अर्थात् मानव धर्मशास्त्र | Manusmriti Arthat Manav Dharmshastra
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.9 MB
कुल पष्ठ :
650
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. गिरिजा प्रसाद द्विवेदी - Pt. Girija Prasad Dvivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका । १३
जे
सामवन्धेन वध्यते, कल्पेस' कल्प्यत्ते कर्मकाएडानुपूव्या संपादयते,
तथंव ज्योतिषेण थ्योत्यते मरकृतिविकृत्युभयाजुभयात्मनां यज्ञाना-
मनुह्ानकालादेशेन प्रकाश्यते | *
बच के चार उपाड् ।
वेद, बेदाह के समान वेदों के उपाज की नियत गणना
नहीं हूं उसका क्रम मिलन भिन्न प्राप्त होता है । याज्ञवल्क्योक्त
क्रम पहले लिखा जा चुका है और यह दूसरा क्रम है--
* झथ चत्वार्युपाज्ञानि बेदानां, संप्रचक्षते।
धघर्मशारूं पुराण च मीमांसान्यायविस्तरः ॥ *
ऐसी दशा में नाम क्रम की एकता नहीं दो सकती और
_ यहांपर मीमांसा से पूर्व तथा उत्तरमीमांसा का ग्रहण किया
. जाता है न्याय से वेशेषिक का ग्रहण हो सकेगा; परंतु सांख्य
झौर योग का भी ग्रहण करना उचित हे क्योंकि वह भी
न्पाय आदि के समान आस्तिक-दशेन हे तो पुराण से सांख्य-
योग का ग्रहण हो सकेगा । अथवा वेशेषिक-न्याय, सांख्य-
योग पवेमीमांसा-उत्तरमीमांसा, यह दार्शनिक विभाग स्वतन्त्र
' है और यही पटशाख के नाम से प्रसिद्ध हे ।
षरशाख्रा का समाहक शलाक ।
* न्यायदेशेषिके पूर्व सांख्ययोगों ततः परमू । ' *
मीमांसादितियं पश्चादित्याहुदशंनानि पट ॥ '
श स्थायविस्तर । ममाणों से अथपरीक्षा के लिये शाख |
वह दो पकार 'का । एक न्याय दूसरा वेशेषिक ! प्रमांसादि
पोडश-पदाथेवादी पश्चाध्यायी गौतम मुनिकृत न्यायशाख्र !
User Reviews
No Reviews | Add Yours...