विनय पीयूष | Vinay Piyush

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Vinay Piyush by महात्मा श्री अंजनीनन्दन शरणजी -Mahatma Sri Anjaninandan Sharanji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका आीरामः दारण मम श्श्‌ न जुलददसानाम- की कि चल भिे चि के श्री ६ रामानुजाचायंजी महाराज ले गये । दासका चित्त इधर सिखने पढ़नेके कामसे बराबर भागता रहा है ब्ृद्धावस्था है आर अखिंमी बहुत कमज़ोर हो गयी है | श्रीअवधघसे बाहर जानेका नियम नहीं है ओर श्रीअयोध्याजीमें कोई ऐसा प्रेस नहीं जो इस कामकों कर सकता । संभव था कि वह छपती जाती तो दास उसे पूरी लिख चुका होता । श्रीवुन्दावनसे बद्द इस्तढिखित टीका... सालभरमें लौटी परन्तु उसमें यत्रतत्र अमूल्य. टिप्पण.... वेदान्तशिरोमणि महाराजजीके मिछे । यदद देखकर फिर उत्साह बढ़ा और जेसे तैसे एक साधारण टीका तैयार हुई और वृन्दावन गयी। श्रीवेदान्तशिरोमणि जीके अमूदय टिप्पणोंके- लिये यह दीन उनका अत्यन्त कूतज्ञ है । उनको देखकर फिर इसने उपनिषदों पुराणों भगवदूगुणदपण भाष्य आदि अन्थोंसे पं. रामकुमार- दासजी वेदान्त भूषण श्रीअयोध्याकी सद्दायतासे बहुत काम लिया | दो वर्ष शरीर बहुत अखस्थ रहा। आशा तो यही थी कि श्रीसरकार अपने समीप लिये चलते हूँ । पर फिरमी बेशमें जिन्दगीने पीछा न छोड़ा । इसकेबाद अपूर्वभूत संसार युद्ध छिड़ गया | मानस-पीयूष का दूसरा बहुत बृहत्‌ संदुकरण लिखा पड़ा रद गया | विनय-पीयूष को कौन पूछे ? मनेक मित्रों और प्रेमियोंने इठ किया कि पूरी बृहहत्‌ टीका लिख दी जाय । पर दासका इठ यद्दी रहा कि छपना प्रारंभ होगा तभी आगे लिखी जायगी । बाबू शारदाप्रसादजी व्यवस्थापक मानस संघ ? रामबन के उद्योगसे प्रयागमं छपनेका प्रबंध हुआ ओर छःसात मासमें पांच फर्म छपे । छपाई अशुद्ध और खराब आडरी प्रफ अंधा लीपापोत्ता देखकर जी घबड़ा गया और वहां छपाना बंद कर दिया गया । परन्तु इसमेंभी प्रभुकी असिम कृपा देख पढ़ी । उनके टंग निराके हैं । इसतरह उन्होंने दाससे कमसे कम एक हजार प्ृष्ठकी टीका साफ़ लिखा ली | सायद्दी उसके छपनेका सुयोग्य प्रबंघ कर दिया | ३९ पदोंका प्रथम संस्करण सानस-पीयूष कार्योलय महत्छा दारागंज प्रयाग के अध्यक्ष श्रीयु्तू अनन्तरामजी श्री वास्तवने दो खण्डों में प्रकाशित किया । परंतु वे बीमार हो जानेसे आागेके भाग अमीतक




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