हिरना सांवरी | Hirna Sanwari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिरना सांवरी -१७
अपने दाई-ददा की इकलोती बेटी थी, उसी तरह ददा भी अपने ददा के
इकलौते बैठे थे जिन के मरने के दाद वह दाऊ घराने के ग्वाले वन यए थे ।
मैं अपन लछमी की शादी नहीं करहूं 1/---ददा कई वार मेरी ओर
देख कर मजाक करते--“मेरे काद लछमी दा की ग्वालिव बनही !”
सेक्ित में जानती थी कि वह झूठा मजाक करते थे । मेरी शादी
भ्रुमघाम से करने की कितनी हॉँस थी उन्हें !
गांव में अभी भी कई शादिया पलनों में हो रही थी और होने वाली
थी। पलनों में ही वयों, दो गर्भवती स्त्रियां आपस में दादा करनी फ्रि
पदि उत के दुरा-दुरी (लैडका-लडकी) हुए तो उन्हें व्याह दिया जाएगा ।
লঙ্গিন থল্রজ্শীনহ साल तक अनब्याद्वी रहने वाती ट्ररियों की भी अब
गाव में कमी नहीं थी । ऐसी टुस्यि|ं याव की बडी-यूदियों के तानों व
चर्चा का विपय होती। वे चन््च करती हुईं इस काले जमाने को दोष
देती और मनाती रहती हि जल्दी-से-जल्दी पिरलय हो जाए ।
टूरियाँ दो कारणों मे बड़ी उम्र तक कुंवारी रह जाती थी। एक
वो यह कि उन के भाई या धन्न रिशेदार शहर जा कर पह़-लिख बाते
ये और वाल-विवाह का विरोए करते थे। जब टुरो मे ही देर से शादी
करने की जिद परड़ सी थी तो टुरियों को बड़ी उम्र तक छुवारी रह
डर इस्तजार करना ही था ।
दूसरा कारद या पैसों का माता-पिता लाख चाह कर भी वेशियों
को शादी से कर बाते वयोंडि देन दे पास दहेज के लिए पैसा नहीं होता
बः ! इछ लोगी में दहर देंदे काने देते थे) उर्हें भी पैसो के लिए माया
पडता पढ़ता ।
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