अर्थ विज्ञान और व्याकरण दर्शन | Arth Vigyan Aur Vyakaran Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) महापंडित राहुल सांकत्यायन, श्री प्रो सत्याचरण ( भू० पू० हाईकमिश्नर बेस्ट इंडीज ), श्री डा० मंगलदेव शादी, भी डा० सूर्यकान्त ( पूर्वी पंजाब विश्वविद्याज्ञय ) भी श० रामकुमार वर्मा, श्री डा० उदयनारायण॒ तिवारी, श्री डा० माताग्रसाद गुस्त, भी आचार्य रघुबीर ( नागपुर ), भी आचार विश्ववन्धु ( होशियारपुर ») भी आचाय इरिंदत शास्त्री सप्ततीर्थ, श्री श्राचाय सुरेन्द्रनाथ दीक्षित ( मुजफूफरपुर ); श्री श्यामलाल यादव वकील, (काशी ), श्री ठा* दीवानरिंद ( सामग, नैनीताल ); भी बा० केदारनाथ गुस, रईस ( प्रयाग )। श्री रूनारायण शास्त्री ( हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ) ने निबन्ध की आयश्यक सामग्री के संकलन और सम्पादन में विशेष सहयोग प्रदान किया है) मुक देखने, अनुक्रमणी के सम्पादन आदि का कार्य बड़े प्रयक्षपूर्वक उन्होंने किया है | तदर्थ उनका कृतश हूँ । | इनके अतिरिक्त कतिपय वे महान और दिव्य आत्माएँ भी हैं जिनका कि भौतिक शरीर सम्प्रति हमारे मध्य में नहीं है श्रौर जिनका वरदद्॒स्त सदा मेरे ऊपर रहा है, उनका चिर ऋणी हूँ । ' भारतीय साहित्य की उन्नति में हिन्दुस्तानी एकेडेमी ( प्रयाग ) का विशेष स्थान है । प्रस्तुत निबन्ध को हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा प्रकाशित कराने का सारा भेय भी ढ1० धीरेन जी वर्मा ( मंत्री, हिन्दुस्तानी एकेडेमी ) को है। श्री रामचन्द्र जी टंडन ( सहा० मंत्री हिन्दुस्तानी एकेडेमी ) ने पुस्तक के प्रकाशन एवं किसी प्रकार का विज्ञम्ब न होने देने में अत्यन्त प्रशंसनीय कार्य किया है। मैं उक्त दोनों महानुभावों का झत्यन्त ही कृतज्ञ हूँ | प्रयाग विश्वविद्यालय ने इस नियन्ध को छपवामे की जो लिए मातृ*पंस्पा का सादर कृतश हूँ । ह १ नैः उुफ्संद्ाार--मीमांश दर्शन में जैमिनि मुनि का कथन है कि 'पुरुषएच कर्माथ्वातु मीमा दर्शन ३,१,६ ) पुरुष कर्म करने के लिए है ।निष्काम कर्म ही उसका झबिच्छिल उद्दे श्य होना चाहिए, उसी उद्देश्य को लक्ष्य में रखकर अपने अन्दर झयोग्यता, झशता और दुर्बोध के होते हुए भी इस विषय पर शेखनी उठाने की पृष्टता की है | आशा है विवेचकवृन्द बाक्ादपि सुभाषितम्‌ उक्ति के श्रनुसार श्रषगुण) भ्रौ श्लान के कारण भुटियों पर ध्यान में देकर गुणो पर श्यान देंगे। विद्वदृवृन्द इस विषय पर जो झ्ार्वश्यक संशोधन एवं सुधार श्रादि के विचार प्रसंतुत करने की कृपा करेंगे, उनका मैं विशेष कृतञ रहूँगा। अंगगामी संस्करण में तदनुसार ही परिवर्तन, परिवर्धन भरादि किया खीं सकेगा | । । जीव अल्पश है, अश्पश ই श्रतएव लीव है | उसी ক্স स्वीकृति दी है, उसके ` शता को दूर करने के लिए




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