मंत्र विद्ध | Mantra Vidha

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Mantra Vidha by राजेंद्र यादव - Rajendra Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंत्र-विद्ध / १७ देख-देखकर मुस्करा और झेंप रहे थे इससे मुझे लगा कि तारक ने अन्दर कमरे में जाकर सुरजीत को मनाने के लिए अपने हाथ से पान खिलाया होगा हो सकता है चुम्बन भी लिया हो क्योंकि चूड़ियों के कुछ इसी तरह खंनकने की आवाज आयी थी । ये लोग सच ही एक-दूसरे को काफ़ी प्यार करते हैं अगर इस तरह भाग भी आये तो क्या बुरा कर दिया ? और थोड़ी देर बाद जब तारक बैठक में आया तो लगा जबरदस्ती स्वाभाविक बनासे की कोशिश कर रहा है। होंठों के कोनों को बार-बार उँगलियों रो पोंछ लेता या चश्मा पीछे ठेल देता था । उसके खुले रंग पर पान खिलकर रचा था । हू मैंने अख़बार एक तरफ समेट दिया अब बोलो क्या करने का इरादा है ? बह आराम से कुर्सी पर आ बैठा । एक-एक ठाँग हाथों से उठाकर ऊपर रबखीं आलधी-पालधी की तरह बात यह है मोहनदा इरादा तो. अब बनाना है। अभी तक तो वहाँ से मिकल भागने की ही समस्या थी ब नौकरी तलाश करनी है सिर के ऊपर छत हो तो मन को जरा चैन आये सो सबसे पहले तो कुछ रहने-सहने का डौल बंठाना है। जैसे आज-- कल है वैसे कब तक मारे-मारे फिरेंगे ? मेरे साथ स्कूल में मथुरा का. ही एक लड़का पढ़ता था गोयल । उसके कोई जीजा या साले यहाँ जूट और हैंसियन का काम करते हैं सो बहु भी उन्हीं के दफ़्तर में आ लगा है । अभी तो एक तरह उसी के साध हूं। कमरा तो उसके पास एक ही है कहीं मछुआ बाज़ार में चौथे तलले पर । लेकिन उसने चीतपुर रोड पर एक गद्दी में हम लोगों का इन्तज़ाम कर दिया है। गद्दी भी क्या एक कमरा हैं सो उसमें हमसे पहले एक नौकर सोता था । अब वह बाहर दूसरे कमरे में सोने लगा है । उस बिल्डिंग में ऐसी-ऐसी पचासों गद्दियाँ हैं सात में उन सबसें यही तौकर-दरबान सुवीम किस्म के लोग सोते हैं । रात को उनके यार-दोस्त भी भा जाते हैं सो कोई रोटी बनाता है कोई कपड़े धोता है कोई भाँग घोटता है और फिर वे लोग बैठकर बीड़ियाँ-सिगरेठ फुँकते हैं ताश-चौपड़ खेलते हैं । दुनिया-भर की अच्छी-बुरी बातें कहते लड़ते- गाते रहते हैं गालियाँ और गंदी-गंदी बातें बकते हैं। मेरा तो कुछ नहीं




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