काव्यांग विवेचन | Kavyang Vivechan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
70 MB
कुल पष्ठ :
225
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
बलभद्र तिवारी - Balbhadra Tiwari
No Information available about बलभद्र तिवारी - Balbhadra Tiwari
भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr
No Information available about भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काव्य का स्वरूप
और .
परिभाषां
प्रथमं जध्पाप
आदि काल से काव्य का स्वरूप समझने और उसके अंगों पर विमर्श करने के
प्रयत्त होते आ रहे हैं। कुछ लोगों ने काव्य को जीवन की व्यापकता से सम्बद्ध माना
है ओर जीवन में उसको अनिवाये सिद्ध किया है। अन्य विद्वानों का मत हैं कि
असभ्यावस्था में काव्य की महत्ता अधिक थी परन्तु जंसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ
है काव्य का ক্যা हेता गया है । काव्य निस्सन्देह जीवन के समान व्यापकं है ओौर
बाह्य जगत् के साथ-साथ आन्तरिक जगत् का भी चित्रणकरने वालाह। यही कारण
है कि काव्य हमें सदेव नयी-नयी प्रेरणायें देता रहता है। यथार्थ जीवन की भूमि पर वह
हमें काल्पनिक, किन्तु सम्भव आदशे जीवन की प्रेरणा देता है। इसी अथेमे काव्य
और जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध माना जाता है।
काव्य के लक्षणों को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। प्रत्येक विद्वाव अपनी
दृष्टि से काव्य के लक्षण प्रस्तुत करता है; परल्तु फिर भी कुछ शेष रह जाता है।
इस प्रकार प्रत्येक विद्वान द्वारा दिये गये लक्षण काब्य के उन पक्षों को हमारे सामने
लाते हैं जिनका पहले उद्घाटन नहीं हुआ था। प्राचीनकाल से ही काव्य लक्षणों पर
विचार किया जाता रहा है ।
संस्कृत साहित्य में काव्यशास्त्र का प्राचीवतम ग्रन्थ वादयशास्त्र माना गया
है! नाटक को काव्य का एक रूप मानकर भरत मुनि ने अपने ग्रन्ध में काव्य के कुछ
अंगों का वर्णन किया है | ये अंग रस, गुण, अलंकार, भाव हैं । ध्यान देने की बात यह
है कि ये सभी अंग नाटक के अन्तगंत प्राप्त काव्य के हैं । काव्य की सबसे प्राचीन
परिभाषा अग्नि पुराण में मिलती है। इसमें काव्य के अंगों का भी उल्लेख हो
गथा है :--
` सं्षेपादाक्यमिष्टार्थं व्यवच्छिन्ना पदावली ।
काव्यं स्फुरदलकारं गुणवदहेष वजितम् +
अर्थात् संक्षेप में इष्ट अथे को प्रकट करने वाली पदावली सै युक्त रसां वाक्य
काव्य है जिसमें अलंकार प्रकट हों और जो दोष रहित और गुणयुक्त हों । कुल
. मिलाकर काव्य की बाह्य रूप रेखा का संकेत यहाँ मिल जाता है। अग्नि प्राणकार
के उपरान्त भामह् ने “शब्दार्थों सहितो काव्यम'” कह कर शब्द ओर अथं के संयोग
. को काव्य की संज्ञा दी। कतिपय आचार्यो ने अलंकार को कान्य में आवश्यक माना _
User Reviews
No Reviews | Add Yours...