रेखा चित्र | Rekha Chitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री कन्हैयालाल मुन्शी करते हैं--बह भी प्रथक्करण करने के लिए | स्वभाव के सभी तत्वों का ये अध्ययन करते हैं ओर निर्दबी की तरह उनका वर्गीकरण | और में यह कर सकता हूँ यह भी मली माँति समझ सकते हैं। ऐसे मनुष्य की बुद्धि को संसार नमस्कार करता है पर प्रेम नहीं कर सकता । आत्मसम्मान और भी अधिक है | दूससें की ओर तिरस्कार- पूवक देने की प्रवृत्ति भी कुछ-कुछ है । रहन-सहन ग्रौर व्यवहार सभ्य तथा सुसंस्कृत है । एक प्रकार की द्य मी है| संप्तार के प्रति ये उदासीन हैं | इन्होंने संपताार से वुछ माँगा था पर मिला नहीं ऐसा लगता है। गव॑ के कारण उसके लिए ये किसी से शिकायत नहीं करतें, परन्तु तिरस्कार करते हैं ओर अपने अंतर में ही निदयी की तरह उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालने में आनन्द का अनुभव करते हैं। इन्हें सहानुभूति अच्छी नहीं लगती, क्योंकि उसके मिलने पर गौरव भंग हो जापगा ऐसी इनकी धारणा है ।# परन्तु कदाचित्‌ इस वाद्य बुद्धि की करिन चद्यन के नीचे हृद्य-करूप में से भावनाओं का मीठा खोत बहता होगा। किसी ने उस जल का पान किया होगा, परन्तु यह जल दुलंभ है अवश्य | हदय का उपयोग करने पर ही उसका मूल्य बढ़ता है । “तन जरा «न ००, +প পপ প[75 19 10011951500 00 ६0८ 07:10, 060০205 € ০০1৭ 7806 850 59190500126 ई0फ ঠা 010) 106 8०६८. 20155210506 ৫০59 180 ০912001210 0৩605161080 05511569 1৮ 1] 00৩ 10012 200. 08563 2 90511510010 01001510510 204 0681005160০ {1६665 ১০০:৪ 015 17৩01 ০. त्रि 90933 090 11155 ऽप ৩০৪৮১৪ 155 01210191010 1215 41521,




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