दस लक्षण धर्म | Das Lakshan Dharm
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उत्तम मार्दव धमे
मान्य का श्रय दुदु है| झदुता वे माने कोसलता झथात् वठारता
লহা। বহীলো श्रभिमान कं कारण झाती है। अमिमानी मनुष्य का
मन प्रपत ঘর में इतना कठोर हो जाता है कि वह अपन सम किसी
को कु गिनता नहीं | दूसरा वा नुक्छ गिनता है भौर भ्रपन का हर
मामत में बड़ा । ऐस व्यक्ति का स्वभाव बन जाता है--मे में करत का |
में ऐसा ह मं बसा है । किन्तु जो मठा मे वरता है মা গলি
মানা হয) এমা আনন में सफ्तता नहा पाता। मैंर्मे करने बाला
बकरा क्साई व॑ हाथा गत्यु प्राप्त करता हैक्ितु मना पक्षी मना
मे ना बरन भ॑ कारण लागा का प्रेम भौर धाटर थाता है। रावण
बड़ा प्रभिमाता था | उसे उसकी पटरानी मन्दालरी ने समभाया>-
माथ | परस्वा का प्रपहरण करव प्रासने भ्रछा काम नहीं किया।
श्राप सांता को उसके पति राम के पास लौटा दीजिए भौर राम से
सधि कर तीजिर। यह सुनकर रावण मटोहरी पर प्रत्यन्त क्र द
हाकर बोजा--तू टुभे राम का भय दिखाती है। वहाँ विखण्टाधिपति
मैं श्रौर कहाँ घन बन धुमने वाला राम । तू मुझे ही उपरेध देती
है। उसवे भा विभीषण ने उस समभाया तो श्रमिमान मे हुदूरे हुए
रावण ने उसे प्रपने राय सही तिकाल दिया। किल्तु इसका फ्या
परिणाम निहला ? रावण लक्ष्मण के हाथा मारा गया । भीता नेना
पद्ी राप्य गया भौर ससार मे वे अपया। का भागी हुआ ।
মিলান विनय गुरा वा विधानत है । विनय के विना मनुष्यम
धम की पात्रता नत्य ध्राती ।/ जब तंत्र हत्य में कोमठता नहीं बल्वि
বহালো है विनय नहा प्रहार है শিনলা লহী ভত্তবলা हैँ तब
त्वे गता उमे गुरु कु सिसा सकत है और न सीखा हुआ उसके चित्त
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