आखिरी चट्टान तक | Aakhiri Chattan Tak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Aakhiri Chattan Tak by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोहन राकेश - Mohan Rakesh

Add Infomation AboutMohan Rakesh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मया शारम्स रै७- लोगों की सजलिस में शरक़त की दावत हो तो इन्कार भी नहीं किया कक का जाता चेसे दमखम तो साहब श्रापकी दुआ से अब भी इतना है कि. ... श्रौर उसने जिन माकें के शब्दों में अपने पुरुषत्व की घोषणा की उन्हें में कभी नहीं यूलू गा | तो झब किनारे की तरफ ले चल. देर हो रही है । उसने फिर कहां श्रब अविनाश ने उससे श्र कुछ सुनने का अनुरोध नहीं किया । नाव घीरे धीरे किनारे के शोर बढ़ने लगी । किनारे पहुँच कर जब हम चलने लगे तो अब्दुल जब्बार ने कहा ताज़ा मछुलियां पकड़ी हैं दो एक सौग़ात के तौर पर ले जाइए । परन्तु अविनाश होटल में खाना खाता था और से उसी का मेहमान था अतः इन सछुलियो का हमारे लिए कोई उपयोग नहीं था 1 हमने उसका शुक्रिया अदा किया और चल पढ़े च्कि फि नया प्रारम्भ मेरे साथ प्रायः ऐसा होता हैं कम से कम सके यह लगता तो है ही-कि बस या टन में जिस खिड़की के पास बेठता हूं धूप उसी खिड़की में से होकर आती है। इस दिशा में पहले से सावघानी बरतने का भी कोई फल नहीं होता क्यों कि सड़क या पटरी का रुख़ कुछ इस तरह से बदल जाता है कि धूप जहाँ पहले होती है वहाँ से हट कर मेंरे ऊपर आने लगती है । फिर भी मुझ से यह नहीं होता कि खिड़की के पास न बेठा करू । गति का अनुभव खिड़की के पास बेठकर ही होता है। बीच में बेठ कर तो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now