हम कहाँ हैं | Hum Kahan Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित जवाहरलाल नेहरू -Pt. Javaharlal Neharu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लेकिन काँग्रेस की अहिसा इससे बिलकुल उलटी थी, और इसका आधार,
राजनीतिक या नैतिक मामलों में, जिन्हें वह बुरा समझती थी उनके सामने सर न
झुकाना था । अहिंसा की इस नीति में, जेसाकि दूसरी सब नीतियों में होता हैं,
परिस्थिति के तक्राजे के मृत)चिक्र समझौता करने की गुजायश है, लेकिन असल में
दूसरी नीतियों की बनिस्बत यह शायद ज्यादा अडिग हैं । यह शक्तिशाली है,
निष्क्रिय नहीं; यह अविरोधी नहीं वल्कि अत्याचार करने की विरोधी हैँ, यद्यपि
वह् विरोध शान्त होता है | व्यवहार में यह न॒सिफ़ प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले परि-
णाम प्राप्त करने मेही, बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा महत्त्व के काम राष्ट्र का नेतिक
साहस बढ़ाने और जनता को शान्त, व्यवस्थित और एकसाथ मिलकर काम करने
की तालीम देने में आइचर्यजनक रूप से सफल सिद्ध हुई है ।
क़रीब-क़रीव हरेक व्यक्ति ने, समाजवादियों तक ने, इसको राष्ट्रीय नीति
के रूप में स्वीकार कर लिया हैँ और यह महसूस कर लिया हैँ कि इसके बदले इस
जसी कोई दूसरी चीज़ नहीं हैं । यह सही है कि कुछ ने इसको, इसके फलितार्थ
को समझे विना सहज स्वभाव ही स्वीकार न कर लिया था और कभी-कभी बिल-
कुल इसके मुताबिक बर्ताव नहीं करते थे । जहाँतक मेरा सम्बन्ध था, मुझे उसके
स्वीकार करने में कोई दिक््क़ृत न थी, यद्यपि मेरे लिए वह धामिक विश्वास की
चीज़ नहीं थी, न में यही कह सकता था कि हर हालतों में वह लागू हौ सकती है!
हिन्दुस्तान के लिए और हमारे आन्दोलन के लिए वह पूरी तरह लागू हो सकती
थी और मेरे लिए इतना ही काफ़ी था ।
खाई पाटना
` मने पुराने नेताओं ओर समाजवादी-दल के बीच के खाई को पाटने में अपनी
शवित जगाने का निङ्चय किया । कुछ हद तक मे इस काम के लिए उपयुक्त भी था,
` क्योकि मेरा दोनो से ही घनिष्ट सम्बन्ध था! सेरा विर्वास था कि इन दोनों दलों
के विना हिन्दुस्तान का काम नहीं चल सकता और मुझे इसका कोई उचित कारण
मालूम नहीं हुआ कि साम्राज्यवाद के खिलाफ़ लड़ाई में इत दोनों का पूरा सहयोग
ग्यां नहीं हो सकता । पुराने नेता तपे हए आदमी थे, जनता में उनकी प्रतिष्ठा थी,
उसपर उनका प्रभाव था और कई बरसों के आन्दोलन के सञ्चालन का उन्हे
अनुभव था। किसी भी तरह वे दक्षिणपक्षी या नरम नहीं थे, राजनीतिक दृष्टि से वे
कहीं अधिक वाम-पक्षी अर्थात् उग्र थे और माने हुए साम्राज्य विरोधी थे । गांधीजी
उनकी पीठ पर थे, काँग्रेस संस्था से वाहर रहकर उनकी सहायता करते थे और
निरचय ही उनकी और देश की शक्ति के स्तम्भ थे। भारतीय रंगमंच पर उनक
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