मानस का हंस | Manas Ka Hans

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Manas Ka Hans by अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar

Add Infomation AboutAmritlal Nagar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मानस का हंस १७ चेहरा शांत किन्तु कुछ-कुछ पीड़ित भी था । वावा ने श्रपने कमण्डलु से जल लेकर मैया के मुख पर छीटा दिया । उनके सिर पर हाथ फेरकर, उनके कान के पास अपना मुख ले जाकर उन्होंने पुकारा--“रतन ! ” चेहरे पर हत्का-सा कम्पन भ्राया पर झांखें न खुली । फिर पुकारा--“रतन 1” लगा कि मानो कमल खिलने के लिए भ्रपने भीतर से संघर्ष कर रहा हो । वावा ने राम-राम बुदबुदाते हुए उनकी दोनों आाखों पर श्रंगूठा फेरा । मैया की श्राखें खुलने लगी । पुतलिया दृष्टि के लिए भटकी, फिर स्थिर हुई श्रौर फिर क्रमश, चमकने लगी । मुरभाया मुख-कमल श्रपनी शक्ति-भर खिल उठा । होठों पर मुस्कान की रेखा खिंच राई । शरीर उठना चाहता है किन्तु है । होठ कुछ कहने के लिए फडकने का निर्वेल प्रयत्न कर रहे हैं किन्तु वोल नहीं फूट पाते । केवल चार श्राखे एक-दूसरे में टकटकी वाघे वडी सजीव हो उठी है । पति की श्रांखो मे श्रपार शांति गौर प्रेम तथा पत्नी की आाखों में झ्ानन्द श्रौर पूर्ण कामत्व का श्रपार सत्तोप भरा है । “'राम-राम कहो रतना ! सीताराम-सीताराम 1” होठों ने फिर फडकना झ्रारम्भ किया । कलेजे की प्राण कूलाचें कण्ठ तक शा गई सीताराम 1! सीताराम ! ” बावा के साथ-साथ मैया के कण्ठ से भी क्षीण श्रस्फुट ध्वनि निकली । वोलने के लिए जीव का सघर्प श्रौर वढा । वावा ने मैया का हाथ अपने हाथ से उठाकर श्रौर प्रेम से दवाकर धीरे से कहा--“वोलो, वोलो, सीताराम ।” “सी एक हिचकी श्राई, मैया की श्रांखें खुली की खुली रह गईं श्रौर काया निश्चेष्ट हो गई । मृत देह पर जीवन की एक छाप अब तक गेप थी । विरह से सुनी रतना मैया सुहागिन होकर परम दवांति पा गई थी । वावा थोड़ी देर वैसे ही मैया का हाथ अपने हाथ में लिए बैठे रहे, फिर उठे और भीतरवाले द्वार की श्रोर जाने के बजाय सडक-पड़ते तीन द्वारों में से वीच वाले का वेड़ना सरका कर उसे खोल दिया । बरनों वाद खुलने के कारण जड़काष्ठ ने भी खुलने में वैसा ही संघर्ष किया जैसा मैया ने सीताराम थणब्द उच्चारण करते हुए किया था । वावा बात भाव से चाहर चदूतरे पर श्राकर खड़े हो गए 1 र्‌ मंया की मौत से कुछ पलों पहले वावा का श्रचानक श्राना गांववालों के लिए एक चामत्कारिक अनुभव तो वना ही साथ ही बड़ गर्व का विपय भी बन गया था । गोसाई महात्मा इस समय चांद-सुरज की तरह लोक उजागर थे । उनके गांव मे पैदा हए थे । जब हुमायूं और शेरणाह की लड़ाई के पुराने दिनों के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now