अष्टादश पाप - निषेध | Ashtadash Pap Nished

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Ashtadash Pap Nished by चौथमल जी महाराज - Chauthamal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अष्टादश-पाप निषेध | (६) निगाह चील के मांनिद चौतरफा रहती है। उस का कोई भी भरोसा नहीं करता । इसलिए तु चोरी का करना छोड़ दे ॥२॥ चोर चाहे कितना ही छिपता फिर एक न एक दिन उसके पाप की पोल अवश्य खुलती है; ओर तव पुलिस के द्वारा पकड़ा जाता ই | फिर वेतो रादि की मार भी उसे खानी पड़ती है । इसलिए, तू चोरी का करना छोड़दे ॥ ३ ॥ फिर नापने जाखने में भी तू चोरी करता है; इसी प्रकार महस्तल को चुराने की चष्ठा तू किया करता है। यो चोरी करना एक प्रकार का रिश्वत ही खाना है। इसालिए तू चोरी का करना छोड़दे ॥४॥ ऐ भाई | अन्याय और अधमे प्रेंक कमाये हुए धन से कभी आराम तो नश्षीब होता नहीं ! फिर यों चोरी आदि के द्वाग धन कमाना, दीन ओर दुनियां सभी की निगाहों से गिरना है। इसलिए तू चोरी का करना छोड़दे ॥ ५ ॥ अगर त्‌ किस के घर नुक्शाद करता द्वे तो उत्त की आत्मा तुके सदा कोसती रहेगी | जिससे तू खाक भें मिल जायगा । इसलिए तू गेरी का करना छोड़दे ॥ ६ ॥ ए भाई ! पराये धन से सत्र केर; अथात्‌ तू उसकी इच्छा मत कर । जो हक की बात हो या जो न्याय और धम से तुझे मिले उसी पर सन्तोप कर | चोथमल तुझे ( बार बार ) कहता है, कि चोरी करना शरदे ।॥ ७ ॥




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