निशीथ सूत्रम् भाग - १ | Nishith Sutram Part - 1
लेखक :
अमर चन्द्र जी महाराज - Amar Chandra Ji Maharaj,
मुनिश्री कन्हैयालालजी कमल - Munishri Kanhaiyalalji kamal
मुनिश्री कन्हैयालालजी कमल - Munishri Kanhaiyalalji kamal
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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अमर चन्द्र जी महाराज - Amar Chandra Ji Maharaj
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मुनिश्री कन्हैयालालजी कमल - Munishri Kanhaiyalalji kamal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). विषय गा्याङ्क पृष्ठाडू
४ चूला-द्वार ६३-६६ ३२-३३
चूला के निक्षेप ६३ ३२
द्व्य चूला के ३ भेद ६४ 1)
क्षेत्र 9 3१ ३ भेद ६५ 3
काब ,, , का स्वरूप ६९ २३२-३३
भाव ॐ 29 १? 2) 3) 9४
५ निशीथ-दार ६७-७० ३३-३५
निशीथ कै निक्षेप ६७ ३३
द्रव्य निद्षीव का मोदाहेरण कथन ६८ ३३-३४
क्षेत्र 7 5 8) ३ ॐ 22
काल 51 ११ 9? 29 ॐ9 ११
भाव ११ গা 2१ ९ 2 1)
निययीय शब्दं का शर्य ६६ ३४
भाव निशीथ का स्वरूप ७० ३४-३५
विषयानुक्रम
६ आयश्चित्त-द्वार ७१-४६६ ३५४-१६६
अ्तिक्रम, व्यतिक्रम, श्रतिचार
और अ्रनाचार का प्रायदिवत्त ও?
आचाराज् की प्रारम्भ की
चारचूलाशो में निददिउ झ्राचार
विधि से विपरीत आचरण
करने ¶ ₹ प्रायश्चित ।
प्रतिमेवक, प्रतिसेवना भ्रौर
प्रतिमेव्य को स्वल्प ७२-७३
प्रतितिवनाके दो मेद ७४-७५
प्रतिसिवक आदि का प्रका-
रान्तर से स्वरूप कथन ७६
प्रतिसिवक-हवार ७७
प्रतिसेवक के प्रकार ७७
॥ प्रतिसिवक-सम्बन्धी भगरचना ७८-८७
॥ प्रतिसेवना-द्रार
प्रतिसेवना के दो মহ লজ
३५
३९६
३६-३७
३७
३७
३७
३७-४०
সাও
विषय गाथाङ्क प्रष्ठाड्ड
मूलग्रुण प्रतिसिवना के € भेद ०८६ ४१
प्रकारान्तर से ४ भेद भं ५
दप-प्रतिसेवना श्रीर कल्प-प्रति
सेवना के अवान्तर भेद ६०-९६१ ४१-४२
प्रमत्त और भ्रप्रमत्त का स्वरूप ९२ ४२
दर्प-प्रतिसिवना और कल्प-प्रति
सेवना में कल्प-अतिसेवना का
प्रथम व्याख्यान करने का हेतु ६३-६४ ४३
अ्रप्रमाद का उपदेश ६५ ति
अनाभोग भ्रतिसेवना का स्वरूप ६६ ॥ + 1
सहसात्कार ,, „ ६७ সিল
ईर्या समिति सम्बन्धी सहसा-
त्कार प्रतिसेवनां का स्वरूप ६५-१०० ४४-४४
भाषा समिति सम्बन्धी सहसा-
त्कार प्रतिसेवनां का स्वरूप १०१ ४५
एपणा श्रादि शेष तीन समिति
सम्बन्धी प्रतिसेवना। १०२-१०३ ४५-४६
प्रमाद-प्रतिसेवना के ५ मेद १०४ ४६
कृपाय-हार १०५-११७ ४६-४६
केपाय-प्रतिसेवना के ११ मेद १०५ ४६
कपाय-प्रतिसेवना सम्बन्धी
प्रायश्चित्त १०६-११७ ४७-४६
विकथा-द्वार ११०-१३० ४६-५३
विकथा-प्रतिसेवना के ४मेद ११०-११६ ४६-५०
स्री-कथा सम्बन्धी আলি श्रादि
कथाओं का स्वरूप और
तत्सम्वन्धी प्रायश्चत्त ११६-१२० ५०
ज्जी कथा के दोप और तत्सम्बन्धी
प्रायरिचित्त १२१ +
भक्तकथाकेदोप ,, १२२-१२४ ५१
देश ७ + „ १२५-१२७ ५१-१२
राज , *) , १२०८-१३० ५२-५३
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