निशीथ सूत्रम् भाग - १ | Nishith Sutram Part - 1

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Nishith Sutram Part - 1 by अमर चन्द्र जी महाराज - Amar Chandra Ji Maharajमुनि कन्हैयालाल - Muni Kanhaiyalal

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मुनिश्री कन्हैयालालजी कमल - Munishri Kanhaiyalalji kamal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. विषय गा्याङ्क पृष्ठाडू ४ चूला-द्वार ६३-६६ ३२-३३ चूला के निक्षेप ६३ ३२ द्व्य चूला के ३ भेद ६४ 1) क्षेत्र 9 3१ ३ भेद ६५ 3 काब ,, , का स्वरूप ६९ २३२-३३ भाव ॐ 29 १? 2) 3) 9४ ५ निशीथ-दार ६७-७० ३३-३५ निशीथ कै निक्षेप ६७ ३३ द्रव्य निद्षीव का मोदाहेरण कथन ६८ ३३-३४ क्षेत्र 7 5 8) ३ ॐ 22 काल 51 ११ 9? 29 ॐ9 ११ भाव ११ গা 2१ ९ 2 1) निययीय शब्दं का शर्य ६६ ३४ भाव निशीथ का स्वरूप ७० ३४-३५ विषयानुक्रम ६ आयश्चित्त-द्वार ७१-४६६ ३५४-१६६ अ्तिक्रम, व्यतिक्रम, श्रतिचार और अ्रनाचार का प्रायदिवत्त ও? आचाराज् की प्रारम्भ की चारचूलाशो में निददिउ झ्राचार विधि से विपरीत आचरण करने ¶ ₹ प्रायश्चित । प्रतिमेवक, प्रतिसेवना भ्रौर प्रतिमेव्य को स्वल्प ७२-७३ प्रतितिवनाके दो मेद ७४-७५ प्रतिसिवक आदि का प्रका- रान्तर से स्वरूप कथन ७६ प्रतिसिवक-हवार ७७ प्रतिसेवक के प्रकार ७७ ॥ प्रतिसिवक-सम्बन्धी भगरचना ७८-८७ ॥ प्रतिसेवना-द्रार प्रतिसेवना के दो মহ লজ ३५ ३९६ ३६-३७ ३७ ३७ ३७ ३७-४० সাও विषय गाथाङ्क प्रष्ठाड्ड मूलग्रुण प्रतिसिवना के € भेद ०८६ ४१ प्रकारान्तर से ४ भेद भं ५ दप-प्रतिसेवना श्रीर कल्प-प्रति सेवना के अवान्तर भेद ६०-९६१ ४१-४२ प्रमत्त और भ्रप्रमत्त का स्वरूप ९२ ४२ दर्प-प्रतिसिवना और कल्प-प्रति सेवना में कल्प-अतिसेवना का प्रथम व्याख्यान करने का हेतु ६३-६४ ४३ अ्रप्रमाद का उपदेश ६५ ति अनाभोग भ्रतिसेवना का स्वरूप ६६ ॥ + 1 सहसात्कार ,, „ ६७ সিল ईर्या समिति सम्बन्धी सहसा- त्कार प्रतिसेवनां का स्वरूप ६५-१०० ४४-४४ भाषा समिति सम्बन्धी सहसा- त्कार प्रतिसेवनां का स्वरूप १०१ ४५ एपणा श्रादि शेष तीन समिति सम्बन्धी प्रतिसेवना। १०२-१०३ ४५-४६ प्रमाद-प्रतिसेवना के ५ मेद १०४ ४६ कृपाय-हार १०५-११७ ४६-४६ केपाय-प्रतिसेवना के ११ मेद १०५ ४६ कपाय-प्रतिसेवना सम्बन्धी प्रायश्चित्त १०६-११७ ४७-४६ विकथा-द्वार ११०-१३० ४६-५३ विकथा-प्रतिसेवना के ४मेद ११०-११६ ४६-५० स्री-कथा सम्बन्धी আলি श्रादि कथाओं का स्वरूप और तत्सम्वन्धी प्रायश्चत्त ११६-१२० ५० ज्जी कथा के दोप और तत्सम्बन्धी प्रायरिचित्त १२१ + भक्तकथाकेदोप ,, १२२-१२४ ५१ देश ७ + „ १२५-१२७ ५१-१२ राज , *) , १२०८-१३० ५२-५३




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