पूर्व की राष्ट्रीय जागृति | Purv Ki Rastrya Jagrati

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Purv Ki Rastrya Jagrati by शंकरसहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूवे की राष्ट्रीय जागृति ६. ढे मालिको क बास से अधिक वैक तथा पांच प्रमुख रे संयुक्त-राज्य-अमेरि का मे चल रदी है । वहां केवल तेल का यही एक ट्रस्ट हो, यह्‌ वात नहीं है। तम्बाकू ट्रस्ट, आयरन ( लोहे ) ट्रस्ट, तथा और भी कई ट्र॒स्टों ने अपने अपने व्यवसायों पर एकाधिपत्य स्थापित कर लिया है। इसी प्रकार किसी न किसी रूप मे इगर्तँड, जमनी तथा अन्य औद्योगिक देशों में भी ट्रस्ट स्थापित हो गये हैं, जिन्होंने अपने अपने व्यवसायों पर एकांधिपत्य स्थापित कर लिया है । इन द्रर्ड-माक्तिफों के पास कितनी अनन्त घन-राशि इकट्ठी हो जावेगी इसका सहज में दी अनुमान हो सकता है । इनका राजनैतिक जीवन पर कितना प्रभाव हो सकता है, यह प्रत्येक विचारवान व्यक्ति स्वयं समम सकता है। आजकल बहुत खर्चीले चुनावों के कारण भरत्येक राजनेतिक दल को घन की बहुत आंवश्यकता रहती है और यह पूंजी-सम्राठ, जो कि प्रत्येक देश मे संख्या में बहुत कम होते दै, इन राजनैतिक दलो को धन की सहायता देकर मोल ले लेते हैं और फिर अपने लाम के लिए शासन-वन्त्र को इच्छानुसार चलाते हैं । जब अपने देश में धन्धों की पूर्ण उन्नति हो जाती है और वहां अधिक पूंजी की आवश्यकता नहीं रहती, तब इन पंजीपतियों के चार्षिक ज्ञाभम की अनन्त धन- राशि का क्‍या उपयोग हो? स्वभावतः वे ज्ञोग अपनी पंजी विदेशों में लगाना चाहते हैं, और इसलिये वे अपनी सरकार को विवश करते हैं कि वह उस पिछड़े हुए देशों पर अपना




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