आचार्य केशव दस | Achary Keshv Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्यायं पृष्ठभूमि केशव का काव्य-त्षेत्र-ओरहछा राज्य केशवदास ओरछा के राज्याश्रित कवि थे, इनके समस्त अयो कौ स्वना ग्रा राज्य की छुत्रछाया में ही हुईं। मध्यभारत की रियासतों में ओरछा राज्य का प्रमुख स्थान है। वर्तमान समय में इसके उत्तर तथा पश्चिम की ओर भोंती प्रान्त, दक्षिण की ओर सागर प्रात तथा बिजावर और पन्ना की रियासतें, और पूर्व की ओर चरखारी तथा विजावर रियासतें एवं गरौली जागीर स्थित है । प्राचीन समय में श्रोरछा राज्य का विस्तार बहुत अधिक था | उस समय इस राज्य का विस्तार उत्तर मँ जमुना से लेकर दक्तिण में नर्मदा तक तथा पश्चिम में चम्बल नदी से लेकर ढोंस नदी तक था । केशव के समय मं सम्भवतः ओरखा राज्य की यही सीमा थी। बुंदेलखंड में मौखिक रूप से प्रसिद्ध है क्लि इस सीमा के अन्तर्गत सब लोग महाराज वीरसिंहदेव की धौस मानते थे* | वीरसिंहदेव केशब के शआश्रयदाता प्रमाणित हो चुके है । ओरहा राज्य के नामकरण के सम्बन्ध मे प्रसिद्ध हैं कि /क बार क्सी राजपूत अधिनायंक ने राजधानी के लिये स्थान चुना जाने पर इस स्थान को देखकर कहा कि 'डंडछे? अर्थात्‌ स्थान नीचा है और तभी से इस राज्य का नाम ओरछा अथवा ओड़छा पढ़ गया | सन्‌ १७८३ के बाद से ओरछा राज्य टीकमगढ की रियासत कष्टा जानि लगा । उसी समय से महाराजं विक्रमाजीत ने टीकमगढ़ को अपनी राजधानी बनाया | कृष्ण भगवान का एक नाम 'रुणछोर टोकम! भी है। इसी नाम के आधार पर राजधानी का नाम टोक्मगढठ रखा गया। ओरलछा राज्य मध्य भारत में स्थित हैं । भूमि अधिकाश पथरीली तथा कम उपजाऊ है | प्राचीन काल मे इस स्थान में बहुत से जगल थे किन्तु इस समय प्राय भाड़ियों और छोटे छोटे पेट 3. झोरद्दा स्टेट्स गज़ेटियर, ए० सं० १1 ९. “हत जमुना उत नर्मदा, इत चर्ल उत टीम । यामे विरसिंद् देव की, सबने सानी धासः ॥ घन्‍्देलखंड-येसव, प्रधत भारा, ए० सं० १६१॥




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