सुमित्रानन्दन पंत- काव्य कला और जीवन दर्शन | Sumitranandan Pant Kavya Kala Aur Jeewan Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन ११ अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं | इधर प्रायः पंत की कृतियो को लेकर दो प्रमुख विचार धारा के अलोचकी में खोचातानो सी रही है। प्रस्तुत संग्रह में डॉक्टर रामविलास शर्मा का लेब माक्तवारों िचारथारा के आलोचकों का प्रतिनिधित्व करेगा | कुछ वर्षों से यह विवाद का वियय रहा ই कि साहित्य में चिरंतन सत्य की अ्भिव्पक्ति अधिक श्रमिप्रेत है ग्रथता ताकालिक सामाजिक समस्पाओं का ही चित्रित किया जाना | आज जब रोटी का प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण है ओर जीवन-यायन की विभीषिका लगलपाती जिह्ा से रक्त चूस रही है तो उत्से सवधा मुँह फेरकर काई केपे उदातीन हो सकता है। किन्तु यह भी कैसे संभव है कि पेट की भूख ही तब कुछ है ओर आत्मा की भूख कुछ नहीं। कैसे कोई सामाजिक समस्याओं में ही परितोथ पाकर निश्सीम सुतमा ओर प्रकति के अनंत वैभव से अ्रख्व मीचकर जी सकता है। साहित्य में सदेव से दोनों की कांच्षा रही है, दोनो ने अ्रधकार माँगा है, दोनों समानान्तर लीको पर देखा गया है। पंत की कविता _शश्वत-सत्य ओर युग-सत्य की सफल अभिव्यक्ति है । प्रीर_युग-सत्य की सफल अभिव्यक्ति है । प्रश्न রবিন जोर अ द ध वा निगद सामंज काव्यको दम श्ररतन्‌ सदय बाध श्रो अन्त में, हम अपने उन सभी साहित्यिक बन्धुओं के प्रति अपना हार्दिक ग्राभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने प्रस्तुत संग्रह के लिए लेख देकर अपनी उदारता शोर सोजन्य का परिचय दिया है | विशेष रूप से भाई प्रभाकर माचवेने अपने सतरामर्श और श्री राहुल सांकृद्यायन, बच्चन, दि० के० वेडेकर ओर शमशेरबहादुर सिंह के लेख भेजकर इस पुस्तक को सुन्दर रूप देने में हमारी सहायता की है | उनकी मे विशेष कृतज्ञ हू | ७/२३ दरियाग॑जः दिल्ली शचीरानी হার शिवरात्रि) 2००७ सम्वत्‌




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