प्रथ्वी राज रासो भाग - 4 | Prithviraj Raso Vol 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24.84 MB
कुल पष्ठ :
577
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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को दिल्ली की गढ़ रक्षा पर छोड़ कर
शेष सो सामंतें सहित चलना निश्चय
हुआ । श्शे८र
रात्रि को राजा का झायनागार में जाकर
सोना और एक श्रदुभुत स्तप्त देखना । ,;
कॉबिचन्द का उस स्रप्त का फल
बतलाना |
११५१ चैतमास की ३ को प्रथ्वीराज
का कनौज को कूच करना । १४६३
पृथ्वीराज का सौ सामंत चर ग्यारह
सौ चुनिंदा सबारों को साथ में लेकर
चलना ।
साथी सामंतों का ओज वर्णन ।
सामंतों की इ्ट छाराघना |
राजा के साथ जानेवाले सामंतों के नाम
झऔर पद वर्यन | १४६४
पृथ्वीराज का जमुना किनारे पड़ाव
डालना । रशुह्८
जमुर्ना के किनारे एक दिन रात
विश्राम करके सब सामंतों को घोड़े
झादि वांट कर और गढ़ रक्ता का
उचित प्रबन्ध करके दूसरे दिन
एथ्वीरान का कूच करना ।
प्रथ्वीर[ज का नावों: पर यमुना पार
करना ।
पृथ्वीराज के नाँत्र पर पैर देते ही
घशुभ देन दोना । के
नांव से उतरने पर एक ख्री का मिलना
उक्त ख्री के स्वखूप का वर्णन |
राजा का कवि से उक्त: महिला के
विषय में पूछना |
राजा का कविचंद से सब प्रकार के
सगुन असयुरनों का फल वर्णन करने
को कहना 1
' कविचंद का नाना प्रकार के सगुन
श्यसगुनों का चुन करना |
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कवि का कहना कि श्राप सफल
मनोरथ होगे परन्तु साथही हानि
भी भारी दोगी ।
यह सुन कर प्ृथ्वीरान का केमास
की मृत्यु पर प्रश्नाताप करके दुचित्त होना ,,
सामंतों का कहना कि चाहे नो हो
गंगा तीर पर मरना हमारे लिये
शुभ है ||
चसत ऋतु के कुसमित बन का
श्रानंद लेते हुए सामंतों सहित राजा
का झागे बढ़ना ।
राजा के चलने पर सम्मुख सजे बजे
दूलहद का दर्यन होना ।
घ्रागे चलकर श्र भी शकुन होना
श्र राजा का मृग को बाण से मारना १६०४
इसी प्रकार शुभ सूचक सगुनों से *
राजा का वत्तीत कोस पथ्यंत निकल
जाना | थे
एक रात्रि विश्राम करें पृथ्वीराज का
राग चलना 1 कर
उक्त फड़ाव से राजा का चलना श्र
भांति भांति के भयानक झपशगुन
होना ।
एक ग्राम में नठ का सगल ( अंग
छिंन ददय ) खेल करते हुए मि-
लना ।
जतराव का कन्ह से कहन्ध कि
राजा को रोको यह झशशुन भया-
नक है । कन्ह का कहना -कि मैं
पदिले कद चुका हूँ ।
वन्ह का कहना कहने सुनने से
होनी नदी टरती
पृथ्वीराज का सब सातों को सम-
साना ३:
फेचमी, सोमवार को पहर रात्रि
गए पड़ाव पड़ना |
१६०४
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