प्रथ्वी राज रासो भाग - 4 | Prithviraj Raso Vol 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह, ३० श्र 8२ 8३ ३४ दे इ्७ झ्प ड्ध ० श्र छेर ध्द ४४ (१० ) श््े को दिल्‍ली की गढ़ रक्षा पर छोड़ कर शेष सो सामंतें सहित चलना निश्चय हुआ । श्शे८र रात्रि को राजा का झायनागार में जाकर सोना और एक श्रदुभुत स्तप्त देखना । ,; कॉबिचन्द का उस स्रप्त का फल बतलाना | ११५१ चैतमास की ३ को प्रथ्वीराज का कनौज को कूच करना । १४६३ पृथ्वीराज का सौ सामंत चर ग्यारह सौ चुनिंदा सबारों को साथ में लेकर चलना । साथी सामंतों का ओज वर्णन । सामंतों की इ्ट छाराघना | राजा के साथ जानेवाले सामंतों के नाम झऔर पद वर्यन | १४६४ पृथ्वीराज का जमुना किनारे पड़ाव डालना । रशुह्८ जमुर्ना के किनारे एक दिन रात विश्राम करके सब सामंतों को घोड़े झादि वांट कर और गढ़ रक्ता का उचित प्रबन्ध करके दूसरे दिन एथ्वीरान का कूच करना । प्रथ्वीर[ज का नावों: पर यमुना पार करना । पृथ्वीराज के नाँत्र पर पैर देते ही घशुभ देन दोना । के नांव से उतरने पर एक ख्री का मिलना उक्त ख्री के स्वखूप का वर्णन | राजा का कवि से उक्त: महिला के विषय में पूछना | राजा का कविचंद से सब प्रकार के सगुन असयुरनों का फल वर्णन करने को कहना 1 ' कविचंद का नाना प्रकार के सगुन श्यसगुनों का चुन करना | ठट् 9 धप 9१. |, श्५९ठ फ प्र भरे ७ श्भ्ट्ट श्र शत शर्ट 99 श्दे९्र श्ड़ कवि का कहना कि श्राप सफल मनोरथ होगे परन्तु साथही हानि भी भारी दोगी । यह सुन कर प्ृथ्वीरान का केमास की मृत्यु पर प्रश्नाताप करके दुचित्त होना ,, सामंतों का कहना कि चाहे नो हो गंगा तीर पर मरना हमारे लिये शुभ है || चसत ऋतु के कुसमित बन का श्रानंद लेते हुए सामंतों सहित राजा का झागे बढ़ना । राजा के चलने पर सम्मुख सजे बजे दूलहद का दर्यन होना । घ्रागे चलकर श्र भी शकुन होना श्र राजा का मृग को बाण से मारना १६०४ इसी प्रकार शुभ सूचक सगुनों से * राजा का वत्तीत कोस पथ्यंत निकल जाना | थे एक रात्रि विश्राम करें पृथ्वीराज का राग चलना 1 कर उक्त फड़ाव से राजा का चलना श्र भांति भांति के भयानक झपशगुन होना । एक ग्राम में नठ का सगल ( अंग छिंन ददय ) खेल करते हुए मि- लना । जतराव का कन्ह से कहन्ध कि राजा को रोको यह झशशुन भया- नक है । कन्ह का कहना -कि मैं पदिले कद चुका हूँ । वन्ह का कहना कहने सुनने से होनी नदी टरती पृथ्वीराज का सब सातों को सम- साना ३: फेचमी, सोमवार को पहर रात्रि गए पड़ाव पड़ना | १६०४ दी है ्ः दर रृद०६ री श्द्भ्प 2




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