प्रेम सुधा (भाग - १०) | Prem Sudha (Part 10)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सद्भाव-प्रत्याख्यान
उपस्थित महानुभावो !
वास्त्र मे उल्लेख है कि शिष्य ने गुरुदेव से प्रन किया-
सन्भावयच्चक्खाणेणं भते ! जीवे कि जणयदइ् ?'
श्र्थात्-हे गुरुदेव ! सद्भाव का प्रत्याख्यान करने से जीव
को क्या लाभ होता है १
किसी चीज़ के अस्तित्व को सद्भाव कहते हैं और न होने को
अभाव कहते है । तो यहाँ सद्भाव के प्रत्याख्यान से क्या लाभ होता
है, यह् प्रदन किया गया है। किन्तु सदुभाव तो जीव, अ्रजीव आदि
नौ ही तत्वों का, विद्व के समस्त पदार्थो काहै। दूसरे शब्दोंमें
धर्मास्ति ग्रादि खौ द्रव्यो को विव में सद्भाव है | तो क्या रास्त्रकार
सभी पदार्थों के त्याग का विधान कर रहे हैं? जब सद्भाव का
त्याग कर दिया जायगा तो फिर शेष क्या रहेगा ?
सज्जनो ! इन्हीं बातों को समभने की श्रावदयकता है । सभी
वस्तुओं का सदभाव है तो उनका त्याग करने का अर्थ क्या ? और
हमारे त्याग करने से उन वस्तुओं का वनता-बिगड़ता क्या है?
सभी सदुभाव वाली वस्तुओं का त्याग संभव भी कैसे है ? क्या
संबर, निर्जेरा ओर मोक्ष का भी त्याग कर दिया.जाय ? शरीर
का भी बोसिरामि' कर दिया जाय ?
जिस पदार्थ का जो स्वभाव है, वह॒ उससे प्रथक् कदापि नहीं
हो सकता । आत्मा में ्रात्मभावी जिन चीजों का सद्माव चला
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