पूरे चाँद की रात | Poore Chand Ki Raat

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Poore Chand Ki Raat by कृष्णचन्द्र - Krishnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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य् पूरे चांद को रात फिर उस से उसी जगह से खाया और दानों की कुछ पंक्तियां मेरे लिये रहने दीं जिन्हें मैं खाने लगा । श्र इसी प्रकार हम दोनों एक ही अुट्टें से खाते रहे श्रोर मेंने सोचा यह मिसरी-मक्क के भुट्टे कितने मीठे हैं । यदद पिछुली फ़सल के मुद्दे जब तू थी लेकिन मैं न था । जब तेरे पिता ने हल चलाया था खेतों में गोडी की थी बीज बोये थे बादलों ने पानी दिया था । घरती ने हरे रंग के छोटे-छोटे पौधे उगाये थे जिन में तू ने नलाईं की थी । फिर पौंघे बड़े हो गये थे श्र उन के सिरों पर सुरियां निकल आई थीं और हवा में छूसने लगी थीं और तू मक्की के पौधों पर हरे-इरे भुट्े देखने जाती थी--जब में न था परन्तु भुट्टों के अन्दर दाने पेदा हो रहे थे । दूध भरे दाने जिन की कोमल व्वचा के ऊपर यदि ज़रा सा भी नाखून लग जाये तो दूध बाहर निकल आता है ऐसे नरम श्र नाज़क भु्टें इस धरती ने उगाये थे और में न था और फिर ये भुड्ें जवान और तगड़े दो गये । उनका रख पक गया । अब नाखून लगाने से कुछ न होता था झपने ही नाखून के टूटने का भय था । भुझों की मूछें जो पहले पीली थीं डाब सुनहली और फिर शन्त में काली होती गई । सकती के भुद्दों का रंग ज़मीन की तरह भरा होता गया । में जब भी न झाया था और फिर खेतों में खलिद्दान लगे भर खलिहानों में बेल चले और भुट्टों से दाने अलग हो गये श्र तूने अपनी सद्देलियों के साथ प्रेम के गीत गाये और थोड़े से भुट्टे छुपा कर श्रौर सेंक कर श्रलग रख दिये जब में न था घरती थी उपज थी प्रेम के गीत थे झाग पर सेंके हुए शभुट्टे थे लेकिन मैं न था । मेंने प्रसन्नता से उसकी ओर देखा और कहा श्राज पूरे चाँद की रात में जैसे हर बात पूरी हो गईं है। कल तक पूरी न थी लेकिन ब्याज पूरी है । उस ने भुट्टा मेरे मु ह॒से लगा दिया । उस के झ्रोठों का गरस-




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