प्रेरणा के प्रदीप | Prerna Ke Pradeep
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.7 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रद वरना के प्रद हि गए । विचारों में खोये-्ाये घर पहुँचे भर कितने ही दिनों तक इस समस्या में उलभो रहे । राजकुमार की यह स्थिति देखकर महाराज दहुत चिश्तित हुए उन्होंने सोचा कि अब वे युवा हो रहे हैं । यदि विवाह कर दिया ते सारिक भोगविलास में सन हो जाएंगे । फिर न बेराग्य भावना पदा होगी न परेशानी का कोई कारण रहे जाथगा उन्होंने देवदह की राजकुमारी थोपा के साथ उनका विवाह करना तय कर लिया । योपा का ही नाम बाद में यद्योधरा हो गया । वह बड़ी सुन्दर और सुशील युवती थी । विवाह होते ही राजकुमार उसके साथ रहने ढगे । य्ों- धरा उनको हर तरह प्रसन्न रखने का प्रयत्त करने लगी और उसका बहुत-सा समय उनकी सेवा में ही बीतता था । यद्यपि यद्योधरा के स्तेह और सेवा ने उनको आरक्षित किया किन्त वह उन पर इस प्रकार न छा सकी कि सब कुछ भूलकर दे उसी में खोये रहते । उनका वेराग्य सम्बन्धी चिन्तन चलता ही रहा । जब-जब वे किसी वृद्ध रोगी था खी व्यक्ति को देख लेते वे राग्य भावना प्रबल हो जाती और वे सोद ने लगते कि भोग-विछात व्यथ है । जरा-सरण के बन्धन से मुक्त होने का कोई उपाय अवद्य ढूंढ़ना चाहिए । उन्होंने देखा कि यौवन के पीछे जरा छिपी हुई है स्वस्थता के पीछे रोग छिपे हुए हूं और जीवन के हास-विलास और रति-रंग के पीछे मरण की काली छाया छिपी हुई है । वे इन दुःखों से सुकत होने के लिए छटपटाने छगते । र८ वर्ष की जायू में यशोधरा के गर्भ से एक पुत्र जन्म हुआ | सारे राज्य में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई किन्तु राजकुसार उसमें वह न सके । उनका चिन्तन चछता ही रहा | इन्हीं दिनों एक वार जब वे उद्यान में घूस रहे थे तो उन्हें एक मिला । राजकुमार ने उससे मुक्ति का उपाय पूछा । साधु ने मै गज परे पे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...