प्रेरणा के प्रदीप | Prerna Ke Pradeep

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Prerna Ke Pradeep by धीरेन्द्र वर्मा - Deerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद वरना के प्रद हि गए । विचारों में खोये-्ाये घर पहुँचे भर कितने ही दिनों तक इस समस्या में उलभो रहे । राजकुमार की यह स्थिति देखकर महाराज दहुत चिश्तित हुए उन्होंने सोचा कि अब वे युवा हो रहे हैं । यदि विवाह कर दिया ते सारिक भोगविलास में सन हो जाएंगे । फिर न बेराग्य भावना पदा होगी न परेशानी का कोई कारण रहे जाथगा उन्होंने देवदह की राजकुमारी थोपा के साथ उनका विवाह करना तय कर लिया । योपा का ही नाम बाद में यद्योधरा हो गया । वह बड़ी सुन्दर और सुशील युवती थी । विवाह होते ही राजकुमार उसके साथ रहने ढगे । य्ों- धरा उनको हर तरह प्रसन्न रखने का प्रयत्त करने लगी और उसका बहुत-सा समय उनकी सेवा में ही बीतता था । यद्यपि यद्योधरा के स्तेह और सेवा ने उनको आरक्षित किया किन्त वह उन पर इस प्रकार न छा सकी कि सब कुछ भूलकर दे उसी में खोये रहते । उनका वेराग्य सम्बन्धी चिन्तन चलता ही रहा । जब-जब वे किसी वृद्ध रोगी था खी व्यक्ति को देख लेते वे राग्य भावना प्रबल हो जाती और वे सोद ने लगते कि भोग-विछात व्यथ है । जरा-सरण के बन्धन से मुक्त होने का कोई उपाय अवद्य ढूंढ़ना चाहिए । उन्होंने देखा कि यौवन के पीछे जरा छिपी हुई है स्वस्थता के पीछे रोग छिपे हुए हूं और जीवन के हास-विलास और रति-रंग के पीछे मरण की काली छाया छिपी हुई है । वे इन दुःखों से सुकत होने के लिए छटपटाने छगते । र८ वर्ष की जायू में यशोधरा के गर्भ से एक पुत्र जन्म हुआ | सारे राज्य में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई किन्तु राजकुसार उसमें वह न सके । उनका चिन्तन चछता ही रहा | इन्हीं दिनों एक वार जब वे उद्यान में घूस रहे थे तो उन्हें एक मिला । राजकुमार ने उससे मुक्ति का उपाय पूछा । साधु ने मै गज परे पे




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