प्राचीन मुद्रा | Prachin mudra

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Prachin mudra by रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद शिलालेख में छः सात राजाओं से अधिक के नाम नहीं मिलते । उक्त सिक्कों के झाघार पर क्तत्रपों का वंश-बूक्त बनाने से यह भी निर्णय होता है कि इनमें त्तत्रयों की नाई ज्येष्ठ पुत्र ही अपने पिता के राज्य का स्वामी नहीं होता था कितु एक शजा के जितने पुत्र हो वें उसके पीछें यदि जीवित रह तो क्रमशः सबके सब राज्य के स्वामी होतें थे श्र उनके बाद यदि वड़े भाई का पुत्र जीवित हो तो वह राज्य पाता था । यह शैति केंचल सिक्कों से हो जानने में आाई है । कुशनवंशियों के लिको से जाना जाता है कि वे शीत- प्रघान देशों से झा हुए थे जिससे उनके सिर पर बड़ी टोपी बदन पर मोटा कोट या लबादा और पैरों में लंबें बूट होते थे । राजतरंगिणी में कल्दण ने उनको तुरुप्क झथत्‌ वर्तमान तुर्किस्तान का निवासी बतलाया है जो उनकी चोशाक से ठीक जान पड़ता है । वे लोग अभ्विपूजक थे और बदुधा सिक्कों में राजा अम्िकुंड में झाइुति देता हुआ मिलता है । वे शिव बुद्ध सूर्य आदि झनेक देवताओं के उपासक थे जैसा कि उनके सिक्षो पर अंकित झाकृतियों से पाया जाता है । उस समय तुर्किस्तान में भारतीय सब्यता फैली हुई थी । गुप्तों के सोने चाँदी और ताँवे के सिक्े मिलते हैं जिनमें सोने के सिक्के विशेष महत्व के हैं क्योंकि उन पर इन राजाओं के कई कार्य अंकित किए गए हैं । जैसे कि समुद्रगुप के सिम




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