संसार का संक्षिप्त इतिहास | Sansar Ka Sankshipt Itihas

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Sansar Ka Sankshipt Itihas  by श्रीनारायण चतुर्वेदी - Shreenarayan Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीसस के उपदेश ७ “यह लोग मुख से मेरी प्रशंसा करते है । परन्तु इनका हृदय मुझसे बहुत दूर है |?” “নিত यह मेरी पूजा भी बथा करते ह| मेरे सिद्धान्तों के स्थान में मनुष्यों के आदेशों का पालन करते हैं?” | ईश्वरीय आदेशों को एक ओर ध्र कर पुरुषों की चलाई हुईं परम्परा पर चलना ठुम लोग ठीक समझते हो और प्याले धोने से बच्तन साफ़ करने आदि ऐसे ही ( निरर्थक , कार्यों में सदा लगे रहते हो और उन्होने उनसे यह भी कहा--तुम अपनी परम्परा प्रचलित रखने की नीयत से इश्वरीय आदेशों का त्याग करते हो# |?” जीसस ने केवल सामाजिक और नंतिक-क्रान्ति ही की घोषणा नहीं की अपितु उनके उपदेश में अत्यन्त स्पष्ट राजनेतिक भुकाव भी दृष्टिगोचर होता है। इस कथन की पुष्टि में बीसियों अवतरण, उनकी शिक्षा ही से दिये जा सकते हैँ | यह ठीक है कि थे अपना राज्य- इहलौकिक न बताते थे ओर कहते थे कि वह राज-सिंहासनासीन न होकर मनुप्यों के अन्त- হন লই | परन्तु इससे यह बात भले प्रकार सिद्ध हो जाती है कि जहाँ जहाँ और जितनी अधिता से मनुष्य-हृदयों में उनके राज्य की स्थापना होगी, उसी परिमाण में बाह्य संसार में भी क्रान्ति होगी और नूतनत्व आयेगा । बहुत सम्भव है कि श्रोताओं ने अपनी वधिरता तथा अन्धेपन के कारण उनके उपदेशो के अन्य भाग न सुने हों, परन्तु संसार में क्रान्ति उत्पन्न करनेबाला दृढ़-निश्चय तो उनके हृदयज्ञम हुए बिना न रहा होगा । उनके विरोधियों की सम्पूर्ण गति और अभियोग चलाने तथा प्राय-दण्ढ देने के तरीके ही से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सम- सामयक भी यह समभते थे कि वह वास्तव मं समस्त संकुचित मानव-जीवन को गला श्रीर परिवर्तित कर एक वृहत्‌ एवं विशद्‌ जीवन स्थापित किया चाहते थे | जीसस के इस प्रकार स्पष्टटया कहने पर यदि समस्त घनादव और सर्मा शालियों के हृदयों में अद्शुत भय के भावों का सश्चार हो गया और उनको अपना संसार हाथ से निकलता हुआ देख पड़ा तो इसमें आश्चय हो क्या है? लोगों सामाजिक-सेवा-विपयक क्द्गर-संरक्षणों को थे वलपृवक खींचकर, सावभीमिक धम > प्रकाश में लाकर रख रहे थे | वे एक भयंकर धार्मिक शिकारी की भाँति मनुष्य जाति को ( उसके ) धरातलस्थ-विलों से जिसमें षट श्राज पर्यन्त सुख से रहती चली आई थी, निकाल बाहर कर रहे थे । उनके राज्य की श्वेत लुक में प्रेम के अतिरिक्त कोई सम्पदा न थी শপ আপ शि # ॥ পি পা আপস রা সা. এ ~ 4 9 ण मम क = পারল त % माक ७ ( ५--६ ) |




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