शांति - यात्रा | Shanti Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)নু হালিশহর
भ्राथेना में अपार सामथ्यं हुं । उसकं साथ गांधीजी के स्मरणका
भी सामथ्यं मिरु जाताहै तो भावना दृढो जाती है । वैसे,
ईश्वर का सामथ्ये अनंत हैँ । उसमें हमारी तरफ से कुछ जोड
देने से बढाव होनेवाला नही है । फिर भी हम्न लोगों के लिए
जहां दोनों सामर्थ्य एकत्र होते हे वहां कुछ विशेष अनुभूति
आती है । अभी बोलते-बोलते गीता का अंतिम इलोक मुझे याद
आया जिसमे कहा हं, “जहा भगवान हं ओर जहां भक्त हँ वहां
सब कुछ ह ।” वैसे तो जहां भगवान है वही सब कुछ है।
लेकिन भगवान को तो हमने आंख से देखा नही है । भक्त को
हम देख सकते हे । इसलिए हमारी निगाह में मक्त की महिमा
बढ़ जाती है। समुद्र का पानी भाप बनकर बादलो में जाता है
और वहां से हमें मिलता हैं। पर हमारे लिए तो बादल ही
समुद्र से बढकर हे । समुद्र को दिल्लीवाले क्या जानें ? वे तो
बादल का ही उपकार समभेंगे । तुलसीदासजी ने लिखा हो
है न ? “राम ते अधिक राम के दासा ।” लेकिन यह तुलना
हम छोड़ दें।
हमारी दृष्टि से इस प्रार्थना में दोनो शक्तिया एकत्र हो
गईं हे । सो भक्तिपूर्वक, बिना चूके, काम-धंधे आदि का सर्व
विचार एके बाज् रखकर हम इस प्राथना मे साथ देगे तो सारे
जीवन में परिवतंन हौ जायगा ।
कुरान में एक सुदर प्रसंग ह । महम्मद पैगंबर ताजिरों
के साथ बात कर रहे हुं । वे उनसे कहते हैँ, “आप लोग रोज
अपने घंघों में लगे रहते हे, लेकिन हफ्ते में कम-से-कम एक
दिन तो अपने धंधों को छोड़कर भगवान की शरण में
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