एन्बबतुता की भारत यात्रा | Enbabatuta Ki Bharat Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.16 MB
कुल पष्ठ :
438
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रू...
इसफे पश्चात् धगले तोन चर्प पय्यत मक्तामं ही रददकर
घवूताने घुरंघर पंडितौसे दर्शन शरीर श्रष्यात्म-विद्याकी शिक्षा-
अदण की । सिव्ज मद्दोदयरे फथनाजुसार यह भी संभव है कि
भारत-सद्ादफो विदेशियोंकि प्रति दानशीलताका समाचार
सुन, चहापर थ्रच्छा पद पानेशी इच्छासे दी इसने इस म्रफार
इसलामी समसनेक्रा फटट-साध्य पयन फिया दो ।
जो हो, धर्मेश्ञान पाप्त करने से चहल से नया थियो के
साथ चवताने काकी यात्रा को, श्रीर चाँसे लौट फर
पुनः पक चार के दर्शन कर भारत जानेफे निश्चयसे जद्दाफ़ों
गया भी परन्तु चहाँपर भारत जानेवाला जदाज़ उस समय
न होनेके कारण इसने विवश हो स्थल-मार्ग द्वारा ही ज्ञानिकी
रद्दरयी, श्रौर चहुतले घोड़े थ्ादि ठाठफे सामानसे सुसज्जित
होकर ( जिनकी संख्या छोर फिदर्स्ति उसने जनताफे
चित्तमें विश्वास उत्पन्न होनेके मयसे नहीं वतायी ) शात्यंत
धर्मेचुद्ध पवं खुलंध्रम व्यक्तिफी हैसियतले
पशिया माइनरके धार्मिक संघोकी 'अभ्यर्थना, श्औौर छप्णु-
सामर्के मंगोल-ज्ञातीय 'सानों' का शातिथ्य स्वीकार फरता
| हुआ यहद सुप्रसिद्ध झफूरीकन ( अफ्रीका निवासी ) खुझवसर
पा तदेशीय रानीके साथ छकुस्तुनतुनियाँ देख, कारिपयन-
समुद्र, मध्य एशिया तथा खुरासानकी उपत्यकाकी राद्द नैशा-
पुर देख, दिन्दूकुश ( जो घतूताके कथनाछुसार शीताधिक्य-
के कारण सत्य दो जानेसे इस नामसे प्रसिस
हुशा था ) श्ौर दियात पार कर काबुल गया, श्र वहाँ से
कृरमाश दोता कुरंस घाडीमें होकर ७३४ दि० में
उतल हरामकी पहली तारी खक्नों सिन्घुनदके किनारे भारतकी
स्रीसापर झागया 1
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