हरिवंश पुराण | Harivansh Puran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ हरिवंशपुराण तास्‍्वहापीकनाणा सिद्ध प्रौव्यव्ययोत्पादठक्षणद्रन्यसापेनं ! श्रीवीतरागाय नमः गांधी-हरिभाईदेवकरणजेनप्रंथमाा पे: द् जन ट्रव्यायपश्षातः सायनाद्यथ शासन दोहा नाशोत्पक्तिश्रीव्ययुत बस्तुमकाशक सिद्ध । नयवश सादिजनादि है जेनागम सुग्रसिद्ध ॥ केवलज्ञानविकाशयुत ठोकालोकसुभान । बंदो लक्ष्मीवृद्धियुत वर्धेमान भगवान ॥ जो किसीके द्वारा बना हुआ न दोनेसे खर्य सिद्ध है, उत्पाद व्यय श्रौव्य लक्षणकों धारण करनेवाले द्रव्योंका कथन करनेवाला है और जो द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा अनादि और पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षा सादि है, ऐसा जिनेंद्र भगवानका शासन सदा जयंत रहो ॥ १ ॥ जो शुद्ध केवलज्ञानके धारणकरनेवाले हैं, ठोक अलोक को प्रकाशित करनेमें अद्वितीय सूये हैं, अरनतज्ञान, अन॑तद्रीन, अनंतसुख अनंत्रवीये रूपी अंतरंग ठष्टमी ओर समवसरण आदि वाद्य ठश्ष्मीके खामी हैं, ऐसे श्रीवद्रेमान 1 भगवानके लिये नमस्कार है ॥२॥ चतुर्थकाठकी आदिगें असि मसि कृषि आदि समस्त रीतियोंको बतलानेवाले, सबसे प्रथम धर्मतीर्थके अ्रचर्तक, समस्त पदार्थोको जाननेवाे, (सर्चज्र) आदिब्रह्मा, श्रीआदिनाथ भगवानकेलिये नमस्कार है 1 रे॥ जिस (अजितनाथ) भगवानने बादियों द्वारा सर्वथा अजेय धर्मतीर्थकी प्रत्ति की, समस्त कर्मरूपी बैरियोंको जीता, उस दूसरे जिनेंद्र श्रीअजितनाथकेठिये नमस्कार है ॥ ४॥ जिस ) नरक भगवानके खितिकालमें उनके उपदेशसे भव्योंको इसबातका विचार हुआ कि सुख मोधमें है या संसारमें है? ऐसे तीसरे तीथेकर श्रीदंभवनाथ भगवानके लिये नमस्कार !; हो ॥ ५॥ जिस भगयानने मोक्षामिलापी भव्यजीवोंकेलिये चाथे धर्मतीर्थकी प्रति 'अुन्ग्लुननतननलनलनलन गुल लेन लगन: “लुन्नरररनि टन ला लनिाट' पति




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