श्राद्ध पित्र मीमांसा | Sraddh Pitra Mimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लसि (९३ १ रक्षा के लिये उपाय करेगा-तब तो उस सहाशय के श्रद्धा मेस से किये हुये उस उपाय को भी “थाद्ध” कहना पड़ेगा । क्यों कि उसने श्रद्धा में उपाय किया रवं झा० समाजी सपने शरीर पोपणार्थ जो भोजन न करते हैं-सो चहद कया स्द्धा से करते हैं ! तथा निद्धा ( नींद ) करना पायखाने * सें जाना सौर शास्त्र नियमानुसार सन्तान उत्पत्ति के लिये स्व- श्त्रीसे संभोग करना इत्यादि सब कुद् वे श्रद्धा पर पूर्ण चाहना से करते हैं-तो फिर इन उपरोक्त सब कर्मों “का नाम श्राद्ध हुमा ! फिर “श्रद्धया फ्रियते तच्युइस” दस पत्त्तिका सझरार्थ करके सरल र+ नातनी सनुष्यों की क्यों * नाहक 'भ्रसाते हो : सौर गजीवित साता तिता की सेवा” यह सर्थ उपरोक्त संस्कृत वाक्य में से किन शरक्षरों का है सीर कहां से निकालते हो ! यदि कहो. कि हम सनुसान /से यह सर्थ निकालते हैं तो अन्य कर्म जी ऊपर दिं- खलाये' गये, ( उन्हों को भी श्रद्धा से होने के का रणा श्राद्ध कहना ) ऐसा शर्य माप लोगों के थि- शाल चुद्धि में नहीं समा सक्ता ? सर्थात्‌ सनुमानसे जेसा यह शर्थ कि श्रद्धा से जीवित मात! पिंताकी सेवा का नास साद्ध वैसा शुद्धा से उपरोक्त संन्य कर्मी ,को करने का भी सलाम शूपद्ध हो सकता है । सफर यह क्यों घेद शास्त्र विरुद्ध सर्थ करके ठसीसे सरल - सास्तिकों को -स्सार्ग से गिराने के लिये रूनणीाुशााएएए।।।एल्‍ए।ए।ए। एड एएीएएसययएपयपलअप




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