पुराण - रहस्य | Puran Rahasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिकायो के मद बे मे १८ श्रध्यायरूप विभाग हैं । क्योंकि ्रात्मा १८ भेदवाला है, १८ प्रकार का है । इसीलिए १८ प्रकार के श्रात्मा के प्रतिपादक, पुराण, महाभारत तथा गोताशास्त्र भी १८ विभागवाले हैं । यद्यपि दिग्देशकाल से झ्रनवच्छिन्त श्रसीम श्रात्मा एक ही है। तथापि विश्व मे स्थित या विश्व मे प्रविष्ट श्रात्मा की ३ परिस्थितियाँ बन जाती हैं । श्रौर वे तीनो प्रकार की परिस्थितियाँ १८ निकायवाली हैं । श्रतः निकायमेद से एक ही श्रसीम झपरिच्छिन्न श्रात्मा के विश्वप्रविष्ट होने पर १८ भेंद हो जाते हैं । उन्ही निकायभेदो का तथा उनके भेद से १८ श्रात्मभेदों का संक्षेप से निरूपण किया जा रहा है-- १८ निकायों के सेद से आत्मा के १८ सेदों का निरूपण जीव व ईश्वर भेद से श्रात्मा दो प्रकार का हैं। ईश्वर श्रसीम व जीव ससीम है । इसी ईश्वर व जीव का स्वरूपविवेचन भमवद्गीता, ब्रह्ममीमांसासूत्र, पुराणशास्त्र तथा इतिहास के द्वारा किया गया है । क्योंकि स्वरूपत. एक होते हुए भी भिन्न-भिन्न परिस्थितियों की श्रपेक्षा से इस श्रात्मा के झ्ायतन १८ प्रकार के है । श्रीर श्रात्मायतन से भ्रवल्छिन्न आत्मा भी चूकि १८ प्रकार का हो जाता है, इसलिये इस श्रात्मतत्व के निरूपण करने वाले सभी शास्त्र प्राय. १८ भागों मे विभक्त है, एव इतिहासरूप महाभारत भी १८ पर्वों मे विभक्त है । केवल ब्रह्ममीमासाशास्त्र १६ पादों में विभक्त. है । इसका कारण झ्रागे प्रदर्शित किया जायगा । भिन्न-भिन्न परिस्थितिमूलक आ्ात्मायतन १८ किस प्रकार से है? श्रौर कौन से है? इसी विषय का स्वेप्रथम सक्षेप से निरूपण किया जाता है । प्रजापतिरूप श्रात्मा से देवता श्रोर भुत यह दो प्रकार की सृष्टि होती है । इस प्रकार दो प्रकार की सृष्टि को तथा एक मूल उपादान ब्रह्म जिससे यह द्विविघ सृष्टि होती है, मिला कर श्रात्मा-- १ब्रह्म २ देव ३ भूत इस तरह ३ प्रकार का हो जाता है--कंत्रश, झन्तरात्मा व भरुतात्मा । इनमें क्षेत्र ही अन्तरतमात्मा कहलाता हैं। क्योंकि वह सबकी श्रपेक्षा श्रन्दर है और भूतात्मा वाह्यात्मा कहलाता है क्योंकि वह सवपिक्षया वहिभु त है । निविघ परिस्थिति-




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